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जानबूझकर कर्ज न देने वाला चोर है

जानबूझकर कर्ज न देने वाला चोर है
         दोस्तो, अक्सर देखा गया है, जब हम किसी दोस्त, रिश्तेदार या जानपहचान वाले को, उसकी मुसीबत के वक्त पैसे देकर मदत करतें है। उस वक्त वो शख्स बड़े अज़ीज से आपका शुक्रिया अदा कर के एक वक्त तैय कर देता है, की इस तारीख तक सारे पैसे लौटा देगा। मगर तैय वक्त निकल जाने के बाद भी उधारी की कोई रकम अदा नही की जाती। आहिस्ता आहिस्ता मिलना-जुलना और बातचीत बंद हो जाती है।
         देखने से लगता है, सब ठीक ठाक है। खा-पी, घुम-घाम रहें है। हर चीज मुक्कमल अदा हो रही है।मगर हमारा कर्जा अदा नही हो रहा है।
          लेकिन दोस्तो, ये आधा सच है! इसका दुसरा पहलू कुछ इस तरह से हो सकता है। अपनी कमाई के हिसाब से, उसकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी जैसे तैसे चल रही थी। फिर अचानक कोई मुसीबत आ गई, और आप एक सच्चे दोस्त की तरह उसके पिछे खड़े होकर उसकी मदत की। आपकी मदत से उसका मसला [ प्रोब्लेम ] हल हुआ। कमाई तो वैसी के वैसे हि रही और बाकी मसले तो हमारी ज़िन्दगी की तरह उसको भी दिन ब दिन आते ही रहे। और हमारी तरह वो भी उसी प्रोब्लेम मे उलझकर उसे सुलझाने की कोशिश मे लगा रहा।
          आपसे बात और मुलाक़ात न करने की सबसे बड़ी वज़ह उसका ज़मीर होता है। ज़मीर की आवाज बार बार उसे ऐहसास दिलाते रहती है, इसने हमारी बुरे वक्त पर मदत की है, उसके पैसे लौटाना चाहिए, मगर हालात के आगे मजबूर वो मुँह चुकाते रहता है। और हम कहतें है, देखो कितना बेगैरत इन्सान है।
        दोस्तो, जब हम सच्चे दिल से इरादा और अदायगी की निय्यत करे, कर्ज लेनेवाले से बात कर कर्ज को एकदम छोटे छोटे किश्तों मे देना शुरू कर दे। हम खुद और परिवार के सभी लोंगो ने एक होकर ठान ले तो, अल्लाह ताआला की मदत भी मिलेगी। और हम कर्ज से निज़ात पा सकते है। सर पर कर्ज हो तो हर सुखचैन खत्म हो जाता है है। दुनिया तो बर्बाद होती ही है, साथ ही साथ आख़रत मे भी राहत नही मिलती।
        इस्लाम और हदिस मे कर्ज के बारे मे बड़ी सक्ती से बया किया गया है। इस्लाम मे सब से ज़्यादा और ऊंचे दर्जेपर शहिद का मर्तबा है, मगर दोस्तो इतना बड़ा मर्तबा होने के बावजूद उसकी तबतक मगफिरत नही होगी, जबतक उसके कर्ज की अदायगी / भुगतान न किया हो। और एक जगह अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा है :-" अगर कोई कर्ज ले और लौटाने की निय्यत ना हो। या जानबूझकर कर कर्ज की अदायगी ना करता हो तो वो विश्वासघातकी और चोरी है।"
           एक हकीक़त- एक बार कर्ज देने वाला कर्ज वापस लेना भूल सकता है, मगर कर्जदार कभी भी भूल नही पाता। उसे उसका ज़मीर / अंतरात्मा कर्जदार होने का ऐहसास दिलाते रहती है।दिलो-दिमाग मे हमेंशा कर्ज एक काँटे की तरह हरदम चुबता रहता है। अल्लाह तआला हम सब को कर्जदार होने से बचाए। आमीन

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: गंदी सोच

: गंदी सोच
          दोस्तो, बारहा देखा गया है, जब मियां-बीवी के आपसी झगड़े हमारे सामने आते है तब दोनों अक्सर एक बात पर जोर देती है की इनकी सोच गंदी है। इनके हिसाब से पराया मर्द या औरत से वक्त बेवक्त मिलना, उनसे घन्टों बात करना, ऑफिस या कारोबार के नाम पर घर से देर तक गायब रहना और सबब पूछने पर सर ना पैर की दलील देना। सब से अहम बात सामने वाले के कपड़े, बर्ताव और नज़र बेहूदा और शर्मसार करने वाले होते है।
           अभी भाईओ, अच्छी सोच क्या होती है? बेहयाई दिखाई देते हुए भी उसपर कुछ भी ना बोलना, उसका हंसकर मंजूर कर लेना, ही शायद अच्छी सोच कहलाई जाती है!
           पिछले दिनो नोबल विजेता मुस्लिम खातून ने हिजाब के सिलसिले मे बड़ी खूब कहा वो कहती है, " इंसान शुरूआती दिनों मे पेड़ के पत्तो से अपनी शर्मगा ढंका करता था। और जैसे जैसे उसका विकास होते गया, वैसे  वैसे जानवर…
[5:15 pm, 26/2/2025] Dady: गंदी सोच
          *दोस्तो, बारहा देखा गया है, जब मियां-बीवी के आपसी झगड़े हमारे सामने आते है तब दोनों अक्सर एक बात पर जोर देती है की इनकी सोच गंदी है। इनके हिसाब से कपड़े और उसे पहनने का तरीक़ा गलत होता है।पराया मर्द या औरत से वक्त बेवक्त मिलना, उनसे घन्टों बात करना, ऑफिस या कारोबार के नाम पर घर से देर तक गायब रहना और इन हरकत पर सवाल पूछने वाले की सोच गंदी सोच समझी जाती है।
           फिर अच्छी सोच क्या होती है? बेहयाई दिखाई देते हुए भी उसपर कुछ भी ना बोलना, बेहूदा कपड़ों को आजका फॅशन ही तो है! इनके हर नाजायज कामो को हंसकर मंजूर कर लेना, ही शायद अच्छी सोच कहलाई जाती है!
           पिछले दिनो नोबल विजेता मुस्लिम खातून ने हिजाब के सिलसिले मे बड़ी खूब कहा वो कहती है, " इंसान शुरूआती दिनों मे पेड़ के पत्तो से अपनी शर्मगा ढंका करता था। और जैसे जैसे उसका विकास होते गया, वैसे  वैसे जानवर की खाल फिर कपड़े। और आज इंसान तरक्की विकास के आला मकाम [ Supreme Position ] पर है और ये हिसाब उसी तरक्की की निशानी है।

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खाँहिश-ए-तकमिल

खाँहिश-ए-तकमिल
               पिछले दिनों चलाए गए रमज़ान से पहले निकाह इस 21 दिन के कैम्पेन मे अल्हम्दुलिल्लाह, चार निकाह तो आम निकाह की तरह से हुए, एक निकाह आज बाद जुमे की नमाज़ के बाद मदीना शरीफ के एक मस्जिद पढ़ाया गया।
               जब मां और बेटा पहली बार www.faiznikah.com की ऑफिस आये, तभी उन्होेंने रमज़ान के महिने मे, उमरे के दौरान मदीना शरीफ मे निकाह करने की शर्त रखकर ही फार्म भरा था।
               मै- इंशाअल्लाह क्यों नही, करने वाली जात अल्लाह की है, हम तो ज़रिया है। मगर एक बात मै अभी कह देता हूँ के लड़की और उसके मां-बाप के उमरे का खर्च आपको करना होगा। उनको सब मंजूर था। बात ये थी के 2019 मे लड़के के मां-बाप हज़ के लिए गए थे। हज़ के दौरान वे एक निकाह मे शरीक हुए थे। तभी मियां-बीवी ने तैय कर लिया था के अपने लड़के का निकाह इधर ही करेंगे। तब लडका इंजीनियरिंग के दुसरे साल मे पढ़ाई कर रहा था। फिर कोविड की महामारी मे वालिद का इंतेक़ाल हुआ। अब्बा की तमन्ना जब लड़के को पता चली तो, मां-बेटे ने ठान ली के निकाह होगा तो मदीना शरीफ मे ही होगा।
                अल् मुक़्तदिर [ बड़ी कुदरत वाला] ने रास्ते आसान कर दिए। नेक काम मे गैबी मदत जरूर पहुंचाई जाती है। और निकाह हो गया।
               बारकल्लाहु-लकुम वबा-र-क- अलैकुम व-ज-म-अ बै-न कुमा-फी ख़ैर। 8 (सहीह)
                [ अल्लाह तुम्हें बरकत दे और तुम पर बरकत दे और तुम दोनों के बीच भलाई में इत्तिफाक दे। ] आमीन।

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कल्पनाविलास × जमिनी हकीक़त

कल्पनाविलास × जमिनी हकीक़त
               दोस्तो, जैसे ही रमज़ान का महिना शुरू होता है। ज़कात, फित्रा और सदका के तरह तरह के पोष्ट और व्हिडिओ व्हायरल होने लगते है। पहले हम उस समोसावाले व्हिडिओ के बारेमे बात करेंगे।
               किसी मुआशरे के खैरख्वाह ने रमज़ान मे हर रोज बिकनेवाले समोसे का एक शहर का हिसाब लगाकर महिने मे फलां फलां करोड रुपए सिर्फ और सिर्फ समोसे पर खर्च करने वाली कौम को कोसता दिखाई दे रहा है।
                 भाई बहोत सारे मुस्लिम नौजवान सिजनेबल बिजनेस करतें है। ये उनका शौक, रूची या मजबूरी होती है। रमज़ान मे खाने-पीने के चीज़ों पर आम आदमी भी दिल खोलकर खर्च करता है। ग़ौरतलब बात ये है के, ये इस्लामिक त्यौहार है! इसमे किसी भी तरह की फुजूल खर्चि नही होती। जिसकी रोजी-रोटी समोसा बनाना और बेचना है। यही उसका कारोबार है। अल्लाह ने उसे उस हुनर से नवाज़ा है। तो वो वही करेगा ना। और इस तरह के कारोबार मे 85% मुस्लिम लोग है।
             और ये एक ठेले का हिसाब नही पुरे शहर का कुल हिसाब है। नही तो बेचारे समोसेवाले को हम करोडपति के नज़रिए से देखने लगेगे।
              लाखों करोड की जकात- कोई जब ज़कात की बात करता है, तो वो हमे एक साथ 20 करोड़ आबादी को या इनके ज़कात को एकसाथ देखकर हैरतअंगेज कर देता है। लाख देड़ लाख करोड रुपए बहोत ज़्यादा है ही। आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता है। इतने रुपए मे हम क्या कुछ नही कर सकते। मगर सचाई, असलियत या जमीनी हकीकत ये है के, हम लोंगो ने जात- बिरादरी, मसलक और फिरके को लेकर अपना अपना अकिदा और सोच के साथ अपनी अपनी अलग पहचान और ग्रुप बना लिया है। और ये कौम के रहनुमा तो सिदा 1400 साल पहले हज़रत उमर रज़ि अल्लाह अन्हु की बात करता है। ये सच है की, उन्होंने बड़ा दिलकश निज़ाम चलाया था। मगर उस वक्त के सामाजिक, कौटुंबिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजकीय हालात कैसे थे? और आज के हालात कैसे हैं? इस बात पर गौर व फ़िक्र की कोई बात नही करता। आज का मुसलमान जात-बिरादरी, मसलक और फिरकापरस्त बना हुआ है। बरोबर 100 साल पहले 1924 मे जो खिलाफ चळवळ खत्म हुई थी, तभी से आपसी फूट, नाइत्तेफ़ाकी  बड़ना शुर हो गई थी। लेकिन शुक्र है, अल्लाह तआला का पिछ्ले 15/20 सालों मे काफी हद तक सुधार आ रहा है। दबी दबी ही सही इत्तेफ़ाक, मिलन, संयोग की बाते हो रही है। लोग इस मसले को संजीदगी से ले रहें है। और इसपर काम भी हो रहा है।
               जब हम उँचाई से देखते है तब रास्ते मे आगे बहोत ट्राफिक नज़र आती है। आगे बढने के बाद रास्ता अपने आप मिलता है। ठीक उसी तरह हमे एक साथ पूरे भारत के मोमिनों की बात करने के बजाय, हर मोहल्ला या हर मस्जिद के हिसाब से ये ज़कात का निज़ाम देखने की ज़िम्मेदारी देते है, तो काम आसान और कामयाब होगा।
              इस काम मे हमे अमीन- ईमानदार, सच्चे, भरोसेमंद और वफ़ादार लोंगो की जरूरत होगी। ऐसे लोग ढूँढना बहोत मुश्किल नही है। आपको ताज्जुब होगा, दुनियाभर मे सिर्फ और सिर्फ 2% लोग बेईमान है, बाकी सब इमानदार और नेक है। और जब कोई बे लोस [ निस्वार्थ, Selfless ] होकर काम मुआशरे के भलाई का काम शुरूआत करता है, तब ये 2% भी अपने आप उस जगह से बर्खास्त हो जाते है।
               जब  www.faiznikah.com या रोटी बॅंक की शुरुआत की थी, तभी भी ऐसे खुदगर्ज लोग जुड़े थे। मगर जब सारा निज़ाम साफ-सुथरा और शफ़ाफ [ transparent ] हो तो, ये लोग बड़े मायूस हो जाते है। और अपना बोरिया-बिस्तर बांध कर गायब हो जाते है। मगर बेबुनियाद बदनामी करने से बाज़ नही आते। ये तो पैसा कमाने का एक धंदा है, लोंगो को भीखारी और ऐंदी बना रहे हो और ना जाने क्या क्या!
              अल-आलिम [सब जानने वाला ] को www.faiznikah.com पिछ्ले 18 साल से, और रोटी बॅंक पिछ्ले 6 सालों से लगातार मुआशरे के खैर के काम मे लगी है। पूरी तहकीक़ात के साथ 150 निराधार बेवाओ रोज तयार खाना देना और जो आ नही सकते उनको राशन किट देना। ये अल्लाह की गैबी मदत और अमल पसंद लोंगो के ताऊन से हो रहा है।

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ज़कात का हक़दार-Undertrial

ज़कात का हक़दार-Undertrial
               दोस्तो, रमज़ान का महिना चल रहा है। शुक्र है, सब मुसलमान इबादत मे लगे है। जैसे के हम सब जानते है के, हर हैसियतमंद मुसलमान पर ज़कात देना फर्ज है। और ज़कात किसे देना है, ये भी साफतौर पर बताया गया है। क़ुरआन मजीद में कई आयतों में ज़कात का जिक्र किया गया है। कुल आठ किस्म के लोंग इसके हक़दार है। उसमे से एक बेगुनाह क़ैदि के आज़ादी के लिए भी ज़कात इस्तेमाल कि जा सकती है।
               आज के हालात किसी से छिपे नही है। Under-Trial के नाम पर हज़ारों मुस्लिम नौजवान जेल मे बिना ज़मानत सड़ रहें है। आवो दोस्तो हमारी ज़कात इन क़ैदियों को छुड़ाने के लिए इस्तेमाल करतें है।
              किसी का घर फिर से आबाद करना, किसी को मुआशरे के मरकज़ी धारे मे फिर से शामिल कर लेना, बेशक बेहतरीन और बहोत बड़ी नेकी है।

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एक सबके लिए और सब एक के लिए

एक सबके लिए और सब एक के लिए
      आली जनाब, आज के दौर मे मां-बाप अपने लड़की के लिए अक्सर न्यूक्लियर फ़ैमिली [ छोटा परिवार ] ढूँढ़ते है। इसके पीछे का बुनियादी मक़सद लड़की को ज्यादा कामकाज करना ना पड़े, यही होता है। मगर एक सर्वे के मुताबिक 80% तलाक इसी छोटे परिवार मे हो रहें है। और वो भी दो चार महिनों मे।
               मां-बाप बचपन से, अपने बच्चे को  खुश रखने के लिए उसकी हर छोटी-छोटी खाँहिश को पूरा करने के लिए कोशिश करते रहते है। ऐसे मां-बाप सही गलत का खयाल करते ही नही, उसकी हर जिद्द को पूरी करते रहतें है। लेकिन यही ज्यादा प्यार और ख़ुलूस बच्चों को ज़िद्दी बना देता है।
            बारहा देखा गया है, छोटे परिवार मे, कोई समझाने वाला नही, किसी का डर नही, कोई रोकटोक नही, हम करे सो कायदा। इस बात से उसके दिलो-दिमाग मे एक बात बैठ जाती है, I am always right। और जब वालिदैन कम पढ़े-लिखे हो तो सुरते हाल मज़ीद संगीन हो जाती है। ये बर्ताव लड़का-लड़की दोनों मे देखने मिलता है।
                 ऊपरी सतह पर दिखाई देनेवाला या दिखाया जानेवाला मंझर बड़ा मुतमईन करने वाला होता है। अच्छे पॅकेज की नोकरी, देखने मे भी ठीक-ठाक, सही उम्र, घरवाले भी सुलझे हुए। और क्या चाहिए? मगर अंदरूनी हकीक़त से हम बेखबर होते है। सामनेवाले के आदत-अख़्लाक़, ऊसकी सोच, अपने हमसफ़र और ज़िन्दगी को देखने का नज़रिया हम नही जान सकते। इंसान की पहचान अख़्लाक़, सफ़ात, आमाल और उसके अंदर की इंसानियत से होती है। जिस्म तो बाहरी दिखावा होता है। उसका रवैय्या तो, उसके साथ वक्त गुज़ारने और व्यावहार से होता है।
               थोड़ी-बहुत बहस भी बड़े झगड़े का सबब बनकर रिश्तों मे दरार आती है। और फौरी,  तड़का-फड़क फ़ैसला लिया जाता है। बेशक जल्दबाज़ी का फ़ैसला सैतान का होता है। मगर जब जॉइंट फैमिली में ऐसे मसले-मसाइल आते है, तब वो उसका अकेले का मसला नही होता पूरे परिवार का मसला होता है। वो सबका होता है! तब घर के बड़े बुजुर्ग आगे बढ़कर मसले को वहां के वहां समझा-बुझा कर खत्म करने की कोशिश मे लग जाते है। और रिश्तो आई कड़वाहट को मिठास मै बदल दिया जाता है।

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इन्तज़ार..

किसी नज़र को तेरा इन्तज़ार......
               नही बेटा, साथ जाना नही, मामू को आपकी पसंद मालूम है। वो तुम्हें जैसा चाहिए वैसे ही कपड़े ले आएंगे। थोड़ी जिद के बाद बेटा मान गया। मां अपने बेटे मे आई तबदीली से परेशान थी। अपने अब्बा से जिद्द कर के हर ख़्वाहिश पूरी करने वाला अपना बेटा, आज कितना समजदार बन गया था।
               ये समझदारी है या हालात के साथ किया हुआ समझोता। झगड़ा मां-बाप का मगर सज़ा भुगतनी पड़ती है, बच्चों को। कमानेवाली मां हो या ना हो, हालात ऐसे ही होते है। बच्चों की तरबियत / परवरिश मे मां-बाप दोंनो का किरदार बड़ा अहम और ज़रूरी होता है।
                आप समझदार है, कम से कम अपने बच्चे के मुस्तक़बिल के लिए तो आपस मे समझोता कर लो। देखो रमज़ान का महिना चल रहा है। सच्चे दिल से दुआ करगो तो, जरूर कबूल होगी। अल्लाह ताआला दिलों के भेदो को जानने वाला और दिलों को फेरने वाला है। क्या पता उधर से भी इसी बात का इंतज़ार हो रहा होगा। आप के पहल करने से आप छोटे नही हो जायेगें, आपके दो कदम पीछे हटकर समझौता [ compromise ] कर लेने से अपनी और अपने बच्चों की ज़िन्दगी संवर सकती है।
               आपका केस पोलिस चौकी, कोर्ट, जमात या दारूल कज़ा मे चल रहा हो या शरियत या कानूनी तौर पर तलाक, खुला हुआ हो, अलग होकर कितना भी समय हो गया हो। आप दोंनो अगर एक होने की ठांन ले तो कोई भी इसे रोक नही सकता।
               दोस्तो जानवर भी अपने बच्चों और जीवन साथी की जुदाई बर्दाश्त नही कर सकता! हम तो अशरफ-उल-मखलूक है।
                इंतेखाब फराश

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शक / वहम का इलाज

शक / वहम का इलाज
        दोस्तो, तलाक की एक बड़ी वज़ह अपने हमसफ़र पर शक करना है। ये एक मानसिक बिमारी भी कहलाती है। इसकी शुरुआत छोटी छोटी बातों से होती है। और एकबार दिलो-दिमाग मे कोई शक का किडा वलवलाने लगे तो इन्सान रात-दिन उसी के पीछे लगा रहता है। गहरे से गहरा रिश्ता भी शक की वज़ह से खोखला बन जाता है। जब हम किसी पर शक करने लगते है तब, उसकी हर बात उसका बर्ताव, आदतों को हम आलग और दुसरे नज़रिए से देखने लगते है। आज के इस भाग-दौड़ भरे माहौल में कंपटीशन, नाउम्मीदी, हताशता, असुरक्षितता और जिस्मानी कमज़ोर के रहते  ऐतमाद / भरोसा का ऐहसास तेज़ी से खत्म हो रहा है। और हम ना चाहते हुए भी शक की बीमारी का शिकार हो जाते है।
       मिज़ाज [ स्वभाव ] ज़िद्दी बनना। किसी की भी ना सुनना, सभी से अलहदगी इख्तियार कर लेना। किसी भी हाल मे समझोता नही करना। जज़्बाती तौर पर किसी से ना जुड़ना, हांलांकि ये खुद को दुरअंदेशी और तार्किक [ समझदारी ] सोच रखने वाले समझते हैं। और ये इसका फक्र भी महसूस करते रहते है।
        कपड़े पर लगे धब्बे, परफ्यूम, इतर की खुशब, फोन पर वक्त बेवक्त बात करना, अकेले बाहर जाना, देरी से आना, रास्ते मे किसी से हंस कर बात करना, हमे इग्नोर किया जा रहा है ये ऐहसास, भावना बार बार आना। इस तरह के बातों पर खयाली और मनघढंत कहानी बनाकर उस सोच को सच मानकर, पहले बहस से होते होते बड़े झगड़े की वज़ह बन जाती है।
            वहम का इलाज हकीम लुक़्मान के पास भी नहीं है। ये एक कहावत के तौर पर ठीक है, मगर हम खुद, परिवार और हमारे खैरख्वाह की मदत से बहुत हद तक शक की बीमारी से छुटकारा पा सकतें है।
      सब से पहले खुलकर बात करे। अपने और पार्टनर के दिल की हालात और सोच समझना बहोत जरूरी है। तभी बात आगे बढ़ सकती है। बात करते वक्त इस बात को गाँठ बाँध लेना चाहिए के, हम खुद और बाकी सब इन्सान हैं। कोई फ़रिश्ता नही है। ग़लतियाँ इन्सान से ही हो होती है।
          नासमझी और अंजाने मे हुई गलतियों को साफतौर पर बयां करे। और सामने वाले की भी ज़िम्मेदारी बनती है। उसे माफ करें। याद रहे हम मुसलमान है। और अल्लाह तआला कुरआन मजिद मे साफतौर पर बयान करते है, "बुराई का बदला वैसी ही बुराई है। लेकिन जो माफ कर दे और सुधार करे तो उसका बदला अल्लाह के ज़िम्मे है। निश्चय ही वह ज़ालिमों को पसन्द नहीं करता।" [ सूरा शूरा 42:43 ]
        इसमे एक बड़ी दिक्कत ये होती है के, हमे लगता ही नही की हमने कोई गलती की है, फिर माफी कैसी, मगर ये हमेंशा याद रहे की किसी भी रिश्ते की बुनियाद सिर्फ और सिर्फ एतमाद / भरोसे पर टिकी होती है। जब हम किसी का भरोसा जित जाते है, तभी रिश्ता मजबूत और टिकाऊ बनते हैं।
           एक दूसरे से बातें छिपाना बंद कर दें। कोई दो लोग जब एक रिश्ते में आगे बढ़ते हैं, तो उनके लिए इस बात को समझना बेहद ज़रूरी है कि खुशहाल और मजबूत रिश्ते के लिए हर छोटी बात को शेयर करें। कई बार हमें कुछ चीजें छोटी लगती हैं, मगर आपके पार्टनर की सलाह लेने से उनका आपके लिए एतमाद, भरोसा बढ़ने लगता है। वे इस बात को महसूस करते है कि आप उनकी कितनी परवाह करती है। रिश्मों की बॉडिंग मज़बूत होने लगती है। ऐसे में एक दूसरे से बातों को छिपाना बंद कर दें और खुलकर हर चीज़ में अपने पार्टनर के फ़ैसले और मनसूबा [ इरादा ] का इस्तकबाल करे।
           देर से घर न लौटें। बारहा ऐसा होता है, जब देर तक किसी न किसी अर्जंट काम की वजह से ऑफिस या कारोबार में हर रोज से ज़्यादा वक्त लगता है। ऐसे में पार्टनर का अंडरस्टैण्डिंग होना ज़रूरी है। अगर आपका पार्टनर आपके लेट आने से आप पर शक करने लगा है, तो उस डाऊट को दूर करने के ज़िम्मेदारी आपकी है। समय से घर आएं और पार्टनर को ऐहमियत दें। उससे अपनी दिनभर की मसरूफ़ियत की वज़ह बताए, ताकि वो आपकी मसले को समझ पाए। कई बार अकेले ही हर चीज़ को हैंडल करके की जुस्तजू में हम रिश्तों को निभाने में पीछे रह जाते हैं। घर समय पर आकर पार्टनर के साथ कुछ वक्त बिताने से शक अपनेआप दूर होने लगेगी।
           एक साथ आउटिंग पर जाएं। जब आप अकेले या दोस्तों के साथ घूमने फिरने के लिए निकलते हैं, तो पार्टनर का शक करना लाज़मी है। दोस्तों के साथ पार्टीज़ में जाने के अलावा पार्टनर को भी समय दें। एक साथ आउटिंग प्लान करें। इससे एक दूसरे के मन में उठने वाले सवाल और शक अपने आप दूर होने लगेंगे। साथ ही अपने साथी के नज़रिए को पहचाना और साच को जानना आसान होगा।
             रिश्तों का अधकचरापन और भरोसा न होना, रिश्ते को बिखेर देता है। हम हमारे लिए क्या ऑप्शन लेते है, उससे ज़्यादा कौनसा ऑप्शन छोड़तें है। इस बात पर हमारा फ्युचर बनता है। अपनी जिद, बेवकूफ़ी, नासमझी और जल्दबाज़ी की बड़ी किमत चुकाना पडता है। अक्सर ज़िन्दगी का ख़ालीपन हमे माजी [ पास्ट ] की याद दिलाकर ये सोचने पर मजबूर कर देता है की, वो सब लोग वो मकान वो दिन बेहतर थे। हमारे फ़ैसले गलत और जल्दबाज़ी मे लिए गए थे।

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ज़मीर की आवाज़

ज़मीर की आवाज़
          दोस्तो, मै हमेंशा कहता आ रहा हूँ के, हमे जो पसंद करता है। उसी से निकाह करना चाहिए ना की हम जिसे पसंद करते है उसे।
         शादी-ब्याह का एहम तकाज़ा है, प्यार, मोहब्बत, ख़ुलूस, अपनापन, ऐतबार, फ़िक्र और हर तरह की इश्तिराक़ [ shearing ] इन्ही बातो से रिश्ते मजबूत और टिकाऊ बनते है। मगर ये फौरी तौर पर [ instant ] नही होता। की आज निकाह हुआ तो कल से सब मिल जाएगा। इसके लिए वक्त लगता है।
          आजका इंसान बड़ा बेसब्रा है, और किसी ने क्या खूब कहा है, बेसबर आदमी जुबान भी जला लेता है और खाने का मज़ा भी नही ले पाता।
         सच कहें तो आजके पेरेंट्स अपना फर्ज, ज़िम्मेदारी और ज़मीनी हकीक़त भूल बैठें है। आज मियां-बीवी से ज्यादा उतावलापन मां-बाप मे देखने मिल रहा है। ये माना के मां-बाप ही सही खैरख्वाह होते है, मगर आप भी अभी बच्चे तो नही रहे आप भी अपना अच्छा-बुरा समज सकते है। जल्दबाज़ी मे कोई भी फ़ैसला लेने से पहले एक बार अपने ज़मीर की आवाज सुनकर फैसला ले।

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दुश्मन की दावत

दुश्मन की दावत
        दोस्तो, आते इतवार 09/02/2025 को बारामती मे www.faiznikah.com का मुस्लिम कुल जमात रिश्तों का जलसा रखा गया है। इसी सिलसिले मे हमेशा की तरह कल दावतनामा व्हायरल कर दिया। थोडी देर के बाद अंजान नंबर से फोन आया। सलाम दुआ के बाद, सामने वाला शक्स- ' भाई साहब संडे को बारामती आ रहे हो तो, हमारी तरफ से आप को दावत है।दोपहर का खाना हमारे घर पर ही होगा"। मै-' अरे भाई कोण हो तुम और ये दावत किस खुशी मे'। वो- नही पहचाना, भाई मै वही हूँ, जिसने आप के ऑफिस मे पोलीस लाकर बड़ा हंगामा किया था। X का अब्बा जिसका निकाह आपने हमारे मर्जी के बगैर लगाया था। मेरे सामने पलक झपकते ही सारा मंजर आ गया।
     तकरीबन 3/4 साल पहले की बात है। एक नौजवान उम्र 27 ऑफिस आया कर अपनी बात रख्की- पिछ्ले 3 साल से एक फर्म मे काम करता है। कामकाज की जगह उसे एक लड़की से मोहब्बत हो गई। अब वो दोनो शादी करना चाहते है, लड़की के घर मे मां और एक भाई है। मां स्कूल मे टिचर और भाई काॅलेज मे पड़ता है। लड़की और उसके घरवाले तयार है, मगर लड़के के मां-बाप और बाकी रिश्तेदार इस शादी के लिए कतई तयार नही। वजह लड़का लड़की से 16 महीने से छोटा और दुसरे बिरादरी से है। दोंनो मुसलमान ही है मगर, सरनेम अलग है।  मै हमेंशा से कहते आया हूँ,  बाप-दादा के काम से मिला नाम से हम अलग-अलग कैसे हो जाते है। और जब जुल्म करने वाला सिर्फ हमारा लिबास और नाम [ सरनेम नही ] देखकर जुल्म कर रहा है, तब हम शादी-ब्याह के वक्त अलग क्योंकर हो जाते है। ये दीमक इस्लाम की बुनियादी बात- मुसावात [ समानता ] को पूरी तरह से बर्बाद और खोखला कर रहा है। हमारी आज की इस हालात की एक बड़ी वज़ह यही भी तो है।
            लड़के के वालिद से दो बार मुलाकात कर के बहोत समझाया पर, वालिद अपनी बात पर अड़े रहे। आखिर मे मैंने शादी की तारीख डिक्लेअर कर दी। और फोन पर वालिद को इसकी इत्तिला देदी। लड़के के वालिद बड़े तैश मे गाली-गलौज करने के साथ मारधाड करने और अंदर करने की धमकी दे दी। और किय भी ऐसे ही,  ऐन निकाह के वक्त पुलिस और कुछ रिश्तेदार को लेकर ऑफिस पहुंच गये।
           इस निकाह मे faiznikah.com की पूरी टीम मौजूद थी। हम सभी ने पुलिस को हकीक़त बताई। पुलिस ने दूल्हा-दुल्हन से बात की, और  वालिद और साथ आए रिश्तेदारों का पासा पलट गया। पुलिस के उन्हें ही अंदर करने की बात रंग लाई। लड़के के वालिद और बाकी रिश्तेदार लड़के से नाता तोड़ने की बात कह कर घुस्से से ऑफिस से निकल गए।  पुलिस की मौजदूगी मे निकाह हुआ।
       शुक्र है अल्लाह सुभान व तआला का, अब बड़े मियां अपनी बहु से बहोत खूश नज़र आ रहे है। कह रहे थे- बहु हमारे पास हि है, अब मै दादा भी बन गया हूँ, मेरी बहु लाखों मे एक है। हमारे सारे खानदानवाले बड़ी तारीफ करते है। घर के पोल्ट्री के कारोबार को बहोत ऊंचाई पर ले गई है। अल्लाह करे हर एक को हमारे जैसी बहु नसीब हो।

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.......दोगलापन

.......दोगलापन
       आऐ मेहमान जब बच्चों को पैसे देने की कोशिश करतें है, तो हम बच्चों को डाटकर मना करते है। इन्ही बच्चों के शादी-ब्याह के वक्त हम बेर्शम भीखारी की तरह, जोड़े की रकम, बड़े हाॅल और अच्छे खान-पान की भीक मांगना अपना हक्क क्यों समजते है।
..........अरमान
        मर्द बच्चे के अरमान मा-बाप उठाए या बच्चा खुद, अपने अरमान, खाँहिश लड़की के मां-बाप के पैसों से पुरे करना, नामर्द की निशानी ही तो है।
..........शिद्दत
         हर जानदार को भुक-प्यास के अलावा जिस्मानी भुक होती है।  जिस्मानी भुक बड़ी बेर्शम और निडर होती है। जब ज़िम्मेदारों ने सही वक्त पर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ना की तो चोरी-चुपके इस भुक को पुरा किया जाता है।
..........सामने का बच्चा
       जब रिश्तेदारी मे रिश्ते की बात चलती है तब हमारे दिलो-दिमाग मे एक खयाल आता है। अरे इसे तो मै बचपन से देखता आया हूँ, ये तो हमारे सामने का बच्चा है। पर इस बात पर ग़ौरतलब करने की बात है। कोई भी अपने बड़े-बुजूर्ग की मौजदूगी का ऐतराम करता ही है। बद-पिछे की तहकीक़ात जरूरी है।

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Ru-Ba-Ru Jalse

Assalamu Alaikum
      दोस्तो,
          ।।आवो जानते है।।
         Ru-Ba-Ru Jalse
                की हकीक़त
         कुछ हि दिनों पहले, faiznikah.com और कुछ भरोसेमंद और इमानदार मॅरेज ब्यूरो ने मिलकर ये Ru-Ba-Ru Jalse की शुरुआत की है। ब्यूरो मे हजारों रिश्ते होने के बावजूद, परफेक्ट और मनपसंद सही मॅच नही मिल पा रहा है। इस की मुख्य वजह है, हम फोटो और बायोडाटा मोबाईल मे देखते है। तब बहोत से सवालात दिलो-दिमाग मे उठतें है। सामने वाले को फोन कर के भी हम पूरी तरह से मुतमईन नही होते। और सामने वाले के बारे मे हम अपनी एक राय बना लेते है। फिर बात वहीँ के वहीँ रूक जाती है। बात आगे नही बढ़ती।
           इसी बात के मद्देनजर ये Ru-Ba-Ru Jalse की शुरुआत हुई है। सब से पहले इसमे लिमिटेड और चुनिंदा प्रोफाईल होते है। हर एक को स्टेज पर आकर अपना प्रोफाईल और रिक्वायरमेंट [ हमे हमसफ़र, दामाद या बहु कैसी चाहिए ] ये बतलाकर अपना टेबल नंबर बतलाना है। [ उसी वक्त स्टेज के स्क्रिन पर आपका फोटो और प्रोफाईल दिखाई देगी ] आपका प्रोफाईल जिसे भी पसंद आये वो आपके टेबल पर आकर इत्मिनान के साथ आपसे बात करेगा। या आपको कोई अच्छा लगे आप उसके टेबल पर जाकर बात करें।
         आपकी बात हसते-खेलते मुक्कमल हो इस लिए, हमारी तरफ से बेहतरीन समोसे और चाय का इंतजाम किया जाता है।
          पिछ्ले जलसे मे अबतक 6 रिश्ते पक्के हुए है। इंशाअल्लाह अब आपकी बारी है।
            इस बार का जलसा ऑन पब्लिक डिमांड पुणे शहर मे शनिचर 09/11/2024 के दिन
 दोपहर 2:00  से 6:00 तक होने जा रहा है।
     । इंट्री फी- 500-/ ₹ पर हेड है।
        टेबल लिमिटेड है। पिछ्ली बार देरी के वजह से बहोत लोंग हिस्सा ना ले सके।
       Contact:-  9226563162
                 Mrs. Parveen

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अव्वल वक्त का सही वक्त।

अव्वल वक्त का सही वक्त।
         पिछले दिनो एक मय्यत मे शामिल हुआ। रूह कब्ज लगभग दोपहर 3 बजे के आसपास हुई थी। जैसे ही रिश्तेदारों को मालूम हुआ सब मय्यत मे शामिल होने के लिए निकल पड़े। सबसे दुर के रिश्तेदार याने मय्यत की सगी बेटी 350- किलो मिटर पर से अपनी मां की मय्यत के लिए तुरंत निकल पड़ी। पहुँचने का सटीक वक्त मालूम होने के बावज़ूद एक हदीस के हवाले से, चंद मिनीटो पहले मय्यत को दफ़नाया गया।
            जहां तक ​​दफ़न में देरी का सवाल है, सुन्नत के मुताबिक़ मय्यत को दफ़नाने में जल्दी करनी चाहिए जैसा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (अल्लाह तआला उसके जिक्र को बुलंद करे) कहा है: ''मृत को दफ़नाने में जल्दी करो।''  [अल-बुखारी और मुस्लिम] मय्यत को दफ़नाने का यही सिद्धांत है, कि उसे दफ़नाने में जल्दी करनी चाहिए और पहल करनी चाहिए जब तक कि दफ़न में देरी करने का कोई ठोस कारण न हो।
            मय्यत को दफ़नाने में देरी करने के कई ठोस कारणों में से एक मय्यत के रिश्तेदारों के आने का इंतज़ार करना है, बशर्ते कि यह लंबे समय तक न हो।
              कुछ फ़हक़ीहों ने कहा है कि मय्यत के रिश्तेदारों, उसके दोस्तों और दूसरे लोगों के आने तक इंतज़ार करना जायज़ है। कुछ इस्लामिक स्कॉलर के फ़तवे अनुसार ऐसा करना जायज़ है। बशर्ते कि इससे उन्हें कोई परेशानी न हो और यह डर न हो कि मय्यत सड़ जाएगी। [ मय्यत सड़ने कि प्रक्रिया 24 घंटे बाद शुरू होती है ] मगर इधर ऐसा मसला बिलकुल ना था।
           रहा देर रात को दफ़नाने का मसला- जहाँ तक जनाज़ा की नमाज़ पढ़ने और दफ़नाने के लिए कोई मुस्तहब वक्त तैय नही है। जनाज़ा की नमाज़ और दफ़न कोई भी वक्त जायज़ है। सिर्फ ये तीन समय पर मना किया गया है 1] जब सूरज उगता है,जबतक की वो पूरी तरह से निकल ना आए। 2] दोपहर के वक्त जब सुरज सिर के ऊपर होता है, जबतक कि सुरज थोड़ा ढल न जाए। 3] जब सुरज ढलने वाला होता है, जबतक कि सुरज पुरी तरह डूब न जाए। [ मुस्लिम ]
        मा आयशा- रज़ियल्लाहु अन्हा- की हदीस है "हमने पैगंबर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दफ़न के दौरान रात के आखिरी हिस्से में कुदालों की आवाज़ सुनी"। इसका सिदा मतलब रात के कोई भी वक्त दफ़न किया जा सकता है।
              मां-बाप की मौत बहुत बड़ा सदमा होता है। मानो सारी दुनियाँ ही उजड़ गई हो। अपनो की मौत का दर्द बेहद दर्दनाक और गमगीन करने वाला होता है। ये हमारे दिलो-दिमाग को झंझोड़कर रख देता है। जबतक हम मय्यत का मरा मुह ना देख ले तबतक हमे यकीन ही नही होता की हमारी ज़िन्दगी का एक अविभाज्य शख्स अब हमेंशा के लिए पोशीदा invisible हो गया है।          

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वादाखीलाफी / धोखाधड़ी

 वादाखीलाफी / धोखाधड़ी
            दोस्तो,
         अक्सर देखा गया है, दिऐ गऐ वक्त पर निकाह होता नही। वक्त दिया गया है, बाद असर के और निकाह हो रहा है, बाद इशा के। अरे भाई जब हमने सरे आम कार्ड प्रिंट करके एलान किया है। याने वादा किया है, की इस वक्त निकाह होगा, फिर देरी करना वादाखीलाफ़ी हुई ना। अल्लाह तआला को ये बात नापसंद है। क़ुरआन और हदीस मे साफतौर पर बताया गया है। जैसे के "जब वादा करो तो पूरा करो, बेशक वादे के बारे में पूछ होगी" [ सुरतुल इस्त्रा : 34 ]
            इसी तरह शादी / वलीमा के खाने की बात- महंगे से महंगा शादी का कार्ड और बहोत महंगी हाॅल की रौनक, दस बारा तरह के खाने, मगर तीन चार जमात के बाद खाने का सारा निज़ाम ही बदल जाता है। किसी को कुछ मिलता है, किसी को कुछ नही। अक्सर देरी से खाने बैठे लोंगो को मीठा और स्टार्टर मिलता ही नही।
             दावत …
[5:29 pm, 6/1/2025] Dady: एजुकेटेड मुस्लिम दामाद चाहिए❓
          दोस्तो, उन्वान जरा तिख़ा है, मगर ये हकीक़त है। जरा किसी भी मॅरेज ब्यूरो मे तहकीक़ात करेंगे तो हमे पता चलता है की, 95% वेल-एजुकेटेड और वेल-सेटल्ड मुस्लिम लड़को को पढ़ी-लिख़ी लेकिन घरेलू बीवी चाहिए। [ पढ़ी-लिख़ी से मुराद है-12वी या ग्रॅज्युएट ]
          लड़कियां सिंसियरली और पूरी पाबंदी के पढ़ाई कर रहीं है। फिर बात आती है, इतनी पढ़ाई करने के बाद घर क्यों बैठना। पढ़ाई का कुछ तो फायदा होना चाहिए ना।
          ये हकीक़त है की, सिर्फ 12% मुस्लिम बच्चे पोस्ट ग्रॅज्युएट तक पहूँच पाते है। जबकी मुस्लिम लड़कियां का पर्सेंटेज है 78% । असंतुलीत पढ़ाई के इस रेशो ने खानदानी निज़ाम / इन्तेजाम [ पारिवारिक व्यवस्था ] पूरी तरह बरबाद कर रहा है। आजकी ये हालत है। नौजुबिल्लाह आते 5/7 सालों मे मंझर बड़ा भयानक होने वाला है।

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ऐसा भी होता है

ऐसा भी होता है
[ फ़ैज के हकीक़ी किस्सा ]
          दोस्तो, अपने बेटे का रजिस्ट्रेशन करने आये [ वक्त - 11:15am ] मियां-बीवी से लड़की के बारे मे बात छेड़ी, बड़े अफसोस के साथ कहने लगे। "कहां कुछ हुआ है, तीन साल से कोर्ट मे केस चल रहा है। केस जहाँ के वहाँ रूका पडा है। वकील हर बार फीस लेकर कहता है। अगले महिने जरूर फैसला होगा। हम तो तंग आ गए है।"
           बात करने से पता चला झगड़े की कोई खास वज़ह न थी। बस कुछ मनमुटाव और कुछ ग़लतफ़हमी के शिकार थे। मै हमेंशा कहता आ रहा हूँ के, सिर्फ जान जाने का ख़तरा हो तभी तलाक लेना चाहिए। बाकी हर बात बातों से हल हो सकती है।
        उसी वक्त www.faiznikah.com के जिम्मेदार आरिफ भाई को सारी बात समझाकर लड़का और उसके घरवालों को ऑफिस लाने को कहा। इधर लड़की के मा-बाप को लड़की और 4 साल के नवासे अमीर को भी बुला लिया।
         सारे आने के [ वक्त- 12:05pm ] सभी हाज़रीन को मशवरा की दुआ पढ़ाई-
 अल्लाहुम्मा अलहिम्नी रुशदी व अइजनी मिन शररी नफ्सी
      तर्जुमा:- ऐ अल्लाह ! मुझे सहीह रहनुमाई की तरग़ीब दे, और मुझे मेरे नफ़्स के फरेब से बचा।
           फिर ऑफिस के रूल समजा दिए- एक वक्त पर एक शक्श बोलेगा। अपनी बात मुकम्मिल होने के बाद दुसरा बोलेगा। बिच मे बोलने वाले को मिटिंग से बाहर किया जायेगा।
          बातचीत शुरू हुई। सभी ने अपनी अपनी बात पेश कि। [ मगर यारो वो जोश, वो घुस्सा और नफ़रत न थी जो तीन साल पहले झगड़े की शुरुआत मे हुई थी। ] वक्त  ग़म, घुस्सा, नफ़रत की धार को मोंड करने मे मदत करता है। बातचीत के दौरान बच्चा अमीर अपने अब्बा के गोदी मे बैठा रहा।
         [ वक्त- 1:00pm ] हालात का ज़ायज़ा लेकर आरिफ भाई ने  एलान किया के, सारे बुजुर्ग चाय के लिए बाहर चलेंगे।  
          तीन साल से एक-दुसरे को दुष्मन समझने वाले मियां-बीवी को बच्चे के साथ छोड़कर हम सभी पास के हाॅटेल मे चले गए। जोहर की नमाज के बाद [ वक्त- 2 :20pm ] ऑफिस लौट आए।
         अल्हम्दुलिल्लाह, ऑफिस का मंझर बड़ा खुशबूदार और ख़ुशनुमा नज़र आया। अबतक जो  मियां-बीवी दूर दूर बैठे थे वो पास-पास बैठ कर गुफ़्तगू कर रहे थे।
         हमे देखकर एकदम खड़े होकर बोले " हमे एक साथ रहना है।" बस हमे और कुछ सुनने की खाँहिश ही नही थी। आरिफ भाई ने मस्जिद से इमामसाहब को दफ्तर के साथ बुलाकर उनका फिर से नऐ महेर के साथ निकाह पढ़ा दिया।
         शुक्र है अल्लाह तआला का, तीन साल का झगड़ा तीन घंटे मे सुलझा दिया।

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हमारा सबक

दुसरों की गलतियां हमारा सबक
           तलाक / कुला लेने वालो वक्त निकालकर एक बार पारिवारिक कोर्ट या भरोसा केंद्र मे जरूर दौरा कर लेना। उधर किसी से भी [ वकील को छोड़कर  ] बात करना आपको सही रास्ता दिखाई देगा।
          हां अगर आप खुद सड़ना या सामने वाले को सड़ाना चाहते है, तो आपके पास कम से कम 6/7 साल और बहोत सारे पैसे और तकलीफदेह हादसे से जूझने की तैयारी जरूरी है।

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मज़बूरी या खुदगर्जी

मज़बूरी या खुदगर्जी
           www.faiznikah.com
              का  हक़ीक़ी किस्सा
       इनके  Expectation के हिसाब से जब रिश्ते आ रहें है, तो इन्कार क्योँ। बात समझ के बाहर थी। लड़की 33 हो चुकी है। वालिद से दो तीन बार फोन करके बात करने की कोशिश की, उनका एक हि जवाब रहता "भाई अभी थोड़ा रूको। मुलाक़ात करके बात करतें है।"
          दो महीने के बाद बड़े मियां ऑफिस आए। सभी लोग जाने के बाद, करीब आकर लड़की के निकाह की देरी की भयानक वजह बताई।
           बड़े मियां और उनकी बीवी दोंनो रिटायर्ड गव्हर्न्मेंट सर्वंट, दो लड़के एक लड़की। दोंनो लड़के शादी होने के बाद से ही अलग रह रहें है। अब जब बच्ची की शादी होगी तो वो भी चली जायेगी हम बुढ़ा-बुढ़ी तो अकेले हो जाएंगे।
       बात सुनकर दिलो-दिमाग सुन्न होगया। "तो कोई घर-दामाद देखो" -मेरी राय। " बच्चे और लड़की की मां राजी नही, उन्हें प्रॉपर्टी मे हिस्सेदार नही चाहिए"। - बड़े मियां।
      ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह, ये हम कहाँ आ गये है।
        इसी तरह बहोत से घरों का मंझर दिखाई देता है, के कुँआरी लड़की कामकाज कर घर चला रही है। बाप और भाई चौराहे की रौनक बढ़ा रहे है।

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निकाह वक्त पर, सुन्नत तरीक़े

अस्सलामु अलैकुम वारहमतुल्लाहि वबरकातुह
  शुक्र है, अल्लाह सुभहानहू ताआला का जिस तरह से UPSC / MPSC के एक्जाम मे मुआशरे के बच्चों की क़ामयाबी के लिए तकरीबन हर दुसरा NGO, FOUNDATION और अमल पसंद लोग एक जुनून की तरह, पिछ्ले 15/20 सालों से कडी मेहनत-मशक्कत कर रहें है। उसके पॉजिटिव नतीजे आज हमे दिखाई दे रहें है।
          ठीक उसी तरह हमे निकाह वक्त पर, सुन्नत तरीक़े पर करने- कराने की और हुआ निकाह प्यार मोहब्बत और इज्ज़त के साथ टिकाये रखने- रखाने की कोशिश साथ ही साथ तुटे, बिखेर दिलोको, रिश्ते, खानदानों को फिर से मरकज़ी प्रवाह मे शामिल करना। इस तरह के काम करने की सख्त जरूरत आ गई है।
      क्यों की, बेशक बेहतरीन मुआशरे की शुरुआत बेहतरीन निकाह से होती है। दुनिया के सामने बेहतरीन मुआशरे की मिसाल पेश करना है। तो हमे, इस जरूरी मसले पर गौर व फिकर करने की जरूरत है। www.faiznikah.com की पूरी टीम ये काम पिछले 17 सालों से कर रही है। मगर काम बहोत बड़ा और फैला हुआ है।
       मुआशरे के सरमायए इफ्तेख़ार और अमल पसंद NGO,  Foundation और लोगों से Humble Request है, इस कार ए सईद मे बढचडकर हिस्सा ले। [ चंदा नही ]
           इसी सिलसिले मे
     इतवार 05/01/2025 को
सुबह 11:00 बजे एक मिटिंग रक्खी गई है।
    पता:- चेरी स्प्रे स्कूल, वेलकम हाॅल के करीब, कोंढवा खुर्द, पुणे
   मुन्तजिर:- सय्यद नवाज़, सलिम शेख, अय्याज शेख, नुरूलहुदा अंसारी, जावेद शेख, वसिम शेख, जुनेद तहसीलदार,  समीर दस्तगीर सय्यद, मंझुर देशमुख, शगुफ़्ता दंडोती, कय्युम दंडोती, नासिर शेख, नजीर मुल्ला, सरदार अमीर शेख, शाहीद तांबोळी, इरफान शेख,सुमय्या फिरदौस, अनिसासिकंदर, परविन फराश, रजा खान, जाहिर पठाण और इंतेखाब फराश

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आपकी राय सर आंखो पर

  दोस्त, जैसे की आप जानते ही है, www.faiznikah.com का काम पिछले 17 सालों से लगातार चल रहा है। छे सात दोस्तों ने मदावती / Matchmaker की बदमाशियों से तंग मुआशरा को कुछ राहत मिले, बस यही इसका मुख्य उद्देश्य था। और बहोत हद तक हम इसमे अल्लाह तआला के मदत से क़ामयाब भी हो रहें है।
            जैसे जैसे काम आगे बढ़ता चला गया, वैसे वैसे इस काम से रिलेटेड दुसरे काम करने के मौक़े आते चले गए। जैसे- निकाह वक्त पर और सुन्नत तरीक़े पर आसान करना / करवाना, निकाह मे फुजूल खर्च से परहेज, [ 193 ] अमल पसंद लोंगो को फक्र ए मिल्लत का एवार्ड [ 68] लड़की के शादी मे लड़की के घर का खाना ना खाने का अहदनामा [तकरीबन 16,000] सिटी के छोटे घर और ऑट ऑफ सिटी के लिए मिटिंग पाँईट [55] बिफोर / आफ्टर मॅरेज काउंसलिंग [ 79 ] छोटी छोटी बात पर हो रहे झगड़े [ 41] मसले मे सलोखा, पोलीस स्टेशन, कोर्ट कचहरी से रोकथाम कर दारूल कज़ा मे फैसला [ 66 ] दुसरा निकाह [ 18 ] उम्रदराज़ बुज़ुर्गों का निकाह [ 19 ] महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात मे कुल मिलाकर 115 जलसे, जिसमे अनपढ, अपाहिज, नाबिना, मुका बहिरा, सफेद दाग, मिर्गी, मतिमंद ऐसों को लेकर तकरीबन हर सब्जेक्ट पर खास जलसे हुए है। उसी तरह मौके के हिसाब से Zoom Meeting [ 40 ] इस तरह के कामो मे अल्लाह तआला का करम है, जिसने हमे ज़रिया बनाया। ये काम किसी एक अकेले का नही, इसमे बहोत लोंगो ने अपना टालैंट और वक्त दिया है।
           ये काम करते करते आए अनुभव जब कलमबंद हुए तब, दो क़िताबें शाया हुए 1] निकाह या तमाशा 2] निकाह मसाइल और हल।
        ज़माने के साथ साथ चलते चलते फ़ैज मॅरेज ब्यूरो की जब वेबसाईट आई, www.faiznikah.com बन गया, तब वो ग्लोबल बन कर उभरता चला गया है। वेबसाइट आने से काम की स्पीड बड़ गई। फिलहाल पुणे का हेड ऑफिस पकड़कर महाराष्ट्र मे कुल 7 सिटी मे इसका ऑफिस चल रहा है। अब रिश्ता जोड़ने का रेशो तो हप्ते मे 2 का है। इस वेबसाइट मे आपको मेरे आर्टिकल और इव्हेंट पढ़ने मिलेंगे, साथ ही साथ दोनो किताबे भी कभी भी पढ़ सकते है।

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थू.....हमारी गंदी सोच पर


          जब उम्र 40 से 60 साल वाला विडो या तलाकशुदा फिर से शादी की तमन्ना कर लेते है तो, अक्सर रजिस्ट्रेशन करने दुर का रिश्तेदार या दोस्त-अहबाब आते है। घरवाले कभी-कभार आते है, खासकर अब्बा की शादी कराने के लिए लड़की हमेंशा पहल करती है। इनकी डिमांड बहोत ज़्यादा नही होती। सब से पहली और खास डिमांड होती है, 35 से 40 साल के बीच की कुँवारी हो, गर विधवा या तलाकशुदा हो तो बिना बच्चे की, दीनदार, दुबली-पतली और हो सके तो मालदार हो। जबके इनके खुद के 2/3 बच्चे मौजूद है।
            अरे बेवक़ूफ़ इन्सान पहले तो इस उम्र की लड़की कुँवारी क्योंकर रहेगी? [ कुछ नादान जिन्हें अच्छे का सही डेफिनेशन मालूम नही ऐसे बैठे है, अच्छे के इंतजार मे! ] और जब वो तलाकशुदा या विधवा हो तो क्या वो बाल-बच्चे वाली नही होगी।
               कहते है बच्चेवाली हो तो आगे चलकर प्रॉपर्टी को लेकर प्रोब्लेम आते है, उसकी तवज्जो शौहर से ज्यादा अपने बच्चों मे होती है। इस तरह के बेतुके बहाने, सबब दिए जाते है। हालाँकि इस्लाम में "गोद लिए गए" बच्चे को विरासत के अधिकार या किसी का नाम देने की मनाही है। तो फिर किस बात का खौफ़ है।
           अनाथों की किफ़ालत [ भरणपोषण ] करना और बुजुर्गों की देखभाल करना- सदक़ा-ए-जारिया है, याने इसका सबाब हमे मरने के बाद भी मिलता रहेगा। एक हदीस मे आया है, यतिम के सर पर हाथ फेरने से उसके सर के बाल बराबर नेकियाँ मिलती है।
            वैसे भी भारतीय मुसलमान की सोच के क्या कहने, किसी भी उम्र मे विधवा अपने बच्चों को छोड़कर शादी करना अय्याशी समझी जाती है। इसी लोकनींदा से कितने ही औरते दुबारा निकाह मे आने से कतराती है।
            और भाई, सौ बात की एक बात, आप अपने खुशी और सहुलियत के लिए निकाह कर रहे हो ना, जरा सोचो जब वो अपने बच्चों के बगैर खुश कैसे रह सकती है। और अगर वो खुश नही है, तो आप कैसे खुश रह सकते हो।

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...........बेवकूफ़ी

............बेवकूफ़ी
     जब जुल्म करने वाला सिर्फ हमारा लिबास और नाम [ सरनेम नही ] देखकर जुल्म कर रहा है, तो हम शादी-ब्याह मे मसलक, फ़िरका, बिरादरी और सरनेम मे अलग-अलग कैसे हो जाते है।
 ............तजुर्बा
     सिर्फ और सिर्फ जान जाने का अंदेशा हो तो ही तलाक लेने चाहिए। बाकी हर बात बातों से हल हो सकती है।
..........कड़वा सच
      अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा लड़का नामर्द नही होता।
............सचाई
       पढ़ाई-लिखाई से सिर्फ चीज़ों के नाम बदल जाते है, फितरत और सोच कभी नही बदलती।
.......... हकीक़त
         सही, परफेक्ट मॅच सिर्फ और सिर्फ औरत + मर्द ही है, बाकी सब ढकोसला [ झूठी बात ] है।

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पेरेंट्स को घुस्सा क्यूँ आता है

 दोस्तो, आज उन पेरेंट्स की बात करेंगे, जो दोंनो यांने मां-बाप 30/35 सालों से जाॅब कर रहें है। ये दोंनो बड़ी मेहनत-मशक्कत और इमानदारी से अपने बच्चों के फ्युचर के लिए हर मौक़े मोहिय्या करते है, और माहोल बनाते है। ये दोंनो भी अपने वक्त अपने फ्युचर के लिए बड़े सिरीयस थे। इसी के चलते वो अपने खानदान और आसपड़ोस के मुकाबिल वो खुद को और अपने फॅमिली को एक बेहतर और आला बनाने मे कामयाब होते है। इन की ये क़ामयाबी का राज़ ये अपनी सोच और डिसिप्लिन को समजते है। बच्चों को बचपन से हम औरों से बेहतर और अलग है, ये दिमाग मे डाल दिया जाता है। खानदान और आसपड़ोस के बच्चों से ज्यादा और किमती भौतिक सुख-सुविधा के साधन की होनेवाली आसानी से उपलब्धता, इनके आला और अलग होने को पुष्टी करते रहती है।
           जब बच्चे पढ़-लिखकर काबिल बन जाते है, तो ये अपने बच्चों के शादी के लिए अपने बराबरी, अपने स्टेटस का परिवार ढूंढते रहतें है। इसमे कोई बुराई भी नही। और ये होना भी चाहिए। और एक बात रिश्ता यदी अपने जैसा एरियात, माहोल, क्लास और कल्चर एकसमान [ Equality ] हो तो रिश्ते निभाने मे आसानी होती है।
          जहां की तमाम अज़ीम खूबियाँ सिर्फ हमारे पास ही है, हम जिधर चाहे उधर रिश्ता कर सकते है। हमे कोई ना बोल हि नही सकता। इस भ्रम मे जब रिश्ते की तलाशी शुरू करते है। तब बायोडाटा के हिसाब से सभी चीजे मिलने के बावजूद, इन्हे कोई रिश्ता पसंद ही नही आता। तअस्सुब, बदगुमानी [ पूर्वाग्रह ] के शिकार, इन्हे औरों के सिर्फ ख़ामियां हि दिखाई देते है। बाजार से जैसे वस्तु ख़रीदते वक्त दुसरी कंपने के प्रोडक्ट से कंपेयर करते है, ठीक उसी तरह कंपेयर किया जाता है। ये कोई ,किसी भी बात मे समझोता [ Compromise ] करने के मूड़ मे नही रहते।
            बड़ी मुश्किल से जो पसंद आता है, वो भी इन्ही की तरह होते है। उनकी सोच भी ऐसे हि होती है। उन्हे भी इनमे हजारों ख़ामियां नज़र आती है। और उनके तरफ से सीधा इन्कार आ जाता है। आजतक कभी भी किसी भी फील्ड मे इन्कार कभी सुना हि ना हो, उसे घुस्सा आना लाजिम है।
            कुदरत का निजाम है की, खुद के मुह की बदबू खुद को कभी महसुस नही होती। उसी तरह अपने अंदर की ख़ामियां हमे नही दिखाई देती। इसका सारा इल्जाम वो सामने वाले पर लगाते है। साथ ही साथ अल्लाह तआला को ही कोसते रहते है। माना के अल्लाह तआला के मर्जी के बगैर कुछ नही होता। मगर हम ये क्यों भूल जाते है की, "जैसे आमाल वैसे फ़ैसले" ये भी तो उसी का फर्मान है।

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रूह का सुकून, मां बनना है

 हम पढ़े-लिखे और साहिब ए हैसियत है, इस दिखावे की खतीर कुछ सयाने लोग मज़हबी बातो को दक़ियानूसी मानकर मगरीबी सफ़ाकत अपनाए हुए है। तो चलो जिसे जो भाषा समझमे आती है, उसी भाषा मे बात करतें है।
                    प्रसिद्ध गयनेकोलॉजिस्ट नवनीत सेन, [ FICOG, अनुभव : +42 साल ] के और माॅर्डन सायन्स के हिसाब से औरत की तंदुरूस्त और सेहतमंद बच्चा पैदा करने की सब से बेहतरीन उम्र 20 से 30 साल की ही होती है।
               औरतें बच्चों के करोडो अंडों के साथ ही पैदा होती है, जो आगे चलकर काम आते है। लेकिन उम्र के साथ ये अंडे आहिस्ता आहिस्ता कम होते जाते है। लगभग 40 की उम्र तक ये पूरी तरह से खत्म हो जाते है।
                  एक और एक्सपर्ट डॉक्टर गरिमा शर्मा कहती हैं कि 30 साल से ज्यादा उम्र होने पर अगर डिलीवरी होती है तो बच्चे में जिनीयाती खुसूसियत मे गैरमामुली बदलाव आने की अंदेशा बढ जाता है. [ जैसे बच्चा अबनॉर्मल, अपाहिज या मतिमंद होने की संभावना ]
                  मा की उम्र बढ़ने के साथ ही अन्य बीमारियों के खतरे भी होते हैं.  30 के बाद हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज ( मधुमेह, शुगर ) जैसी बीमारियों के रिस्क बढ़ने लगते हैं. इसके कारण प्रेग्नेंट होने में दिक्कतें आ सकती हैं।
                     इन परिस्थितियों में अगर कोई हामेला औरत [ प्रेग्नेंट ] है, तो बढ़े हुए हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटीज से हमल गिरने [ गर्भपात ] का खतरा बहुत बढ़ जाता है. ऐसे में प्री टर्म बर्थ की भी आशंका रहती है। साथ-साथ प्रेसेंट प्रेविया, स्टीलबर्थ, सिझेरियन डिलीवरी, डिलीवरी के बाद भारी खून बहना, बच्चे का पैदाइश वजन कम रहना जैसे परेशानीओ का भी सामना करना पडता है।
                   ये माना के औरत बच्चे पैदा करने की मशीन नही है, मगर औरत का औरत बनने मे उसे मां बनना एक लाज़मी शर्त भी तो है। करिअर और हमारी सोच ने हमने बच्चों को कीस खाईमे धकेलने की तयारी कर रहें है, अल्लाह ही बेहतर जानता है।

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रिश्तेदार या दियासलाई

दोस्तो, आज faiznikah.com के दो किस्सों की बात करेंगे।
         1] दो साल पहले की बात है, लड़का- उम्र 35, बीवी का इंतेक़ाल हुआ, दो बच्चे, खुदका घर, अच्छी नोकरी और कोई बैड हैबिट नही। अपने ज़िन्दगी का हमसफ़र और बच्चों को मां का साया मिले, यही खाँहिश।
          लड़की 35 साल की, घरमे सिर्फ मां, अब्बा का इंतेक़ाल हुआ है। मां और लड़की दुसरों के घर मे घरकाम करके अपना गुज़ारा करते है। कहने को तो नज़दीकी बहोत अमिर और इज्ज़तदार रिश्तेदार है, मगर गरिबी मे कोई, रिश्तेदार आसपास नही भटकता। कई सालों से मेलमिलाप और बातचीत नही हुई। मगर जब शादी-ब्याह की बात आती है, तो दुनिया के रस्मों-रिवाज के हिसाब से बातचीत मे बुलाना ही पड़ता है।
         ऐसे अमिर और इज्ज़तदार रिश्तेदार अक्सर दिए वक्त से दो-तीन घंटे लेट आते है। कहीं कुछ देना ना पड़े इस लिए वो हमेशा डिफेंस मोड़ मे आते है। और हुआ भी ऐसा ही। जब के लड़का, लड़की और दोनो घरवालों को हर चीज पसंद और मंजूर है, ये बात बताने के बावजूद रिश्तेदार ने बच्चों को मदरसे मे भेजने की बात निकाल कर माहौल खराब कर दिया। काफी बहेस के बाद ऐलान कर दिया के ये रिश्ता होगा तो, इस के बाद इनके कोई भी किसीभी कामकाज मे नही आने वाले। और मशवरे से पांव पटकते निकल गए। रिश्ता टूटने की कगार पर आ गया। मगर अल्लाह तआला ने www.faiznikah.com की टीम को सिर्फ और सिर्फ जोड़ करने के लिए ही बनाया है। टीम को ये किस्सा नया ना था। टीम के ज़िम्मेदारों ने पहल की और आज दो साल हुए। मियां-बीवी और बच्चे खुशहाल ज़िन्दगी बसर कर रहें है।
        2] अपनी या अपने रिश्तेदार या दोस्त की दुष्मनी की खातिर हो रहे अच्छे रिश्ते भी तोड़कर हुयी जीत का मज़ा लेने वाले रिश्तेदार भी हर खानदान मे पाये जाते हैं। जब दो परिवार सोलों से एक-दुसरे को जानते, पहचानतें है, बच्चों ने एक-दुसरे को पंसद किया, समदी-समदन के दिल जुड़े। और रिश्ता पक्का होने जा हि रहा था, तब लड़के के बड़े अब्बा जो के एक साहिब-ए-हैसिय्यत और दीन की अच्छी-खासी जानकारी रखने वाले है। दो दिनबाद डिक्लेअर कर दिया के, यदी इधर रिश्ता तैय होता है, तो शादी मे नहीं आऐंगे साथ ही साथ सगे भाई से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर देंगे। तहकीक़ात से पता चला के उनका साला और लड़की के अब्बा एक ही एनजीओ मे काम करतें है। सामाजिक काम करने वाली ये संस्था मे कुछ अनबन हो गई, एक एनजीओ मे दो ग्रुप बन गए, और लड़की के अब्बा विरोधी ग्रुप मे है।
            अस्तग़फिरुल्लाह, ये हम कहां आ गए है। जब की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने साफतौर पर जोड़ने वालो के लिए जन्नत की बशारत [ ख़ुशख़बरी ] की है, याने इसका सीधा मतलब होता है कि तोड़ने वाले को जहन्नुम तैय है।
         मै हमेंशा से कहते आ रहा हूँ की, सिर्फ और सिर्फ मा-बाप ही बच्चों के सच्चे खैरखाँ होते है। बेलौस मोहब्बत का परचम हमेंशा मा-बाप के हाथों मे रहा है। मै ये नही कहता के सभी रिश्तेदार दियासलाई का काम करते है। इसमे कुछ अपवाद [ Exception ] भी होते है। कुछ रिश्तेदारों मे अपनों के लिए बड़ा ख़ुलूस, मोहब्बत और हमदर्दी देखी जाती है। ऐसे ही नेक और अमल पसंद लोगों की वजह से दुनिया का निजाम चल रही है।
    या अल्लाह हमे एक और नेक बना

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आओ सच्चे दोस्त का फर्ज अदा करें।

आओ सच्चे दोस्त का फर्ज अदा करें।
हक़ की बात बोल, बिनधास्त बोल
        रमीज़ - अब्बा और मां आप दोंनो से एक बात कहनी है।
       अब्बा- बोलो
       रमीज़- मुझे शादी सादगीसे, सुन्नत तरीक़े पर करनी है।
        अब्बा- ये क्या तमाशा लगा रख्खा है, अब सब बातचीत हो गई है। उन्होंने हाॅल, केटरिंग और बाकी की बुकिंग कि है। परसो संडे तेरा साला भी आने वाला है, तेरे शादी का जोड़ा दिलाने।
      रमीज़- हां अब्बा इसी शादी के जोड़े ने तो मेरी आँखे खोल दी है।
      अब्बा- क्यूँ क्या हुआ ?
      रमीज़- जब मैने मेरे दोस्तों से शादी के जोड़े की खरेदी का कहा, तब सब खुशी खुशी साथ आने तय्यार हो गये। मगर जब उन दोस्तों को पता चला के, जोड़ा दिलाने मेरा होनेवाला साला आ रहा है, याने मै लड़की वालों से पैसे ऐंठ रहा हूँ तो सबके सब दोस्तो ने साथ आने से साफ इन्कार कर दिया। और उन्होेंने ये भी कहा है की, वो मेरे निकाह मे नही आयेंगे।
            आब आप ही बताओ, मै क्या करू? बिना दोस्तो के निकाह मे रौनक कहां से आएगी।
      अब्बा- कहाँ है तुम्हारे दोस्त ? बुला लाओ बात करतें है।
      अब्बा दोस्तों [ मंझुर, अल्ताफ, बशीर, अय्याज ] से- अरे भाई हमने उनसे कोई डिमांड नही की है, वो तो लड़की वालों के अरमान है। होनेवाले समदी-समदन ने साफ तौर पर कहा है की, इतना सब बच्चों के लिए तो कमाया है। अब खर्च नही करेंगे तो ये पैसा किस काम का ? अब आप ही बताइए, हम क्या करे ? हमने कोई जोर-जबरदस्ती नही की, ये सब उनके मर्जी से हो रहा है।
        मंझुर- ज़िन्दगी भर आपने अपने बलबूते पर और अपनी कमाई से रमीज़ को पढ़ाया-लिखाया, अपनी हैसियत के बढ़ाकर हर ख़्वाहिश पुरी की, पाल-पोस कर काबिल बनाया, अब वो काबिल बन गया है तो वो अब आपके लिए, अपने घर के लिए कर रहा है। अब उसके ज़िन्दगी मे ये सब से बड़े ख़ुशी के मौक़े पर दुसरों के कपड़े पहना रहे हो! ये कहाँ तक मुनासिब है।
        अल्ताफ- ये शरीअत के खिलाफ है। आप जैसे साहिब-ए-हैसिय्यत का देख देखकर गरीब लोग कर्जा ले लेकर आपको फालो करने के चक्कर मे कर्जदार बन बैठे है। इन फुजूल और बेबुनियादी रितीरिवाज के सबब कितने ही लड़कियों के शादी उम्र कबकी निकल चुकी है।
         बशीर- हमने देखा है जाहिरी तौर पर साहिब-ए-हैसिय्यत दिखने वाले कितने ही मा-बाप अपनी लड़की की शादी के वक्त हाथ पसारे दरदर मदत मांगने मजबूर हो जाते है, वो भी आप जैसे लोंगो की वजह से। सिर्फ 30% लड़कीओं के निकाह मा-बाप अपने बलबूते करते है। बाकी 70% निकाह ऐसे ही दुसरों की मदद से होते है।
        अय्याज- चाचा ये जहालत है।अभी भी वक्त नही गया। अभी इसी वक्त दिल से 'अस्‍तगफिरूल्‍लाह' पडलो, और अपनी गलती सुधार लो। अल्लाह ने मुसलमानों व तमाम लोगों से यह वादा किया है कि जब हम अपनी की गई गलतियों की माफ़ी मागेंगे तो अल्लाह हमें ज़रूर माफ करेंगे। चाहे हमारे गुनाह (पाप) पहाड़ जितने बराबर ही क्यों न हो।
          रमीज़ के अब्बा को बात समजमे आयी। उसी वक्त उन्होंने होनेवाले समदी को फोन करके निकाह सादगी और सुन्नत पर करने की बात कही। फोन पर कह रहे थे, नही जी...संडे बच्चे को ना भेजना.... रमीज़ तो आज ही अपने दोस्तो के साथ शादी का जोड़ा लेने जा रहा है।
         रमीज़ अपने दोस्तो के साथ खुशी खुशी घर से निकल गया। उसके अब्बा बहोत देर तक समदी से बाते करते रहे। इन बातो से घर का माहौल अचानक ख़ुशगवार हो गया। बेशक गुनाह से बचकर सुन्नत पर अमल करना तो सौ शहीदो के उतना सबाब है। सबाब की बरकत और रौनक यूं भी घर को ख़ुशहाल और ख़ुशगवार बनाती ही है।

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मेरीज ब्यूरो दोधारी तलवार

आजकल निकाह के लिए रिश्तेदार रिश्ते के जरिया नही बनते। वजह कुछ भी हो मगर ये हकीक़त है। इसलिए आज मेरेज ब्यूरो की तादाद बढ़ गई है। कुछ हद तक ये सही भी है, रिश्तेदार, आसपड़ोस और दोस्त-अहबाब के मुकाबिल मेरेज ब्यूरो की पहुंच वसी / बड़ी होती है।  
              निकाह के खाँहिशमंद अपना या अपनों का प्रोफाईल ब्यूरो मे दर्ज करा देता है। भले ही एक-दुसरे के Expectation जो भी हो, असल मे हर कोई एक प्यार करने वाला, देखभाल करने वाला, हमेंशा साथ देने वाला और भरोसेमंद हमसफ़र चाहता है। मेरेज ब्यूरो मे आपके हिसाब से सैंकड़ो परफेक्ट मॅच होते है। हालाँकि, ये सच्चाई झुठला नही सकते के अपने नज़रिए के मुताबिक परफेक्ट लाईफ पार्टनर की तलाश दुनिया मे सबसे मुश्किल काम है। इसी मुश्किल को आसान बनाते हैं, ये मेरेज ब्यूरो। मगर साथ ही साथ इसके कुछ नुकसान भी हो रहे है।
             जादातर मेरेज ब्यूरो का काम शोशल मिडिया के ग्रुप मे या वेबसाईट पर चलता है। वहाँ पर रोज नये नये प्रोफाईल आते रहते है। मेरेज ब्यूरो से कितने भी परफेक्ट मॅच और सही प्रोफाईल आए तो भी इससे और बेहतर आयेंगे इसके इन्तज़ार मे ये आये प्रोफाईल को नजरअंदाज करते रहते है।
            साथ ही साथ जब प्रोफाईल व्हायरल होता है तो लगातार तीन चार दिनों तक सामने वालों के हर रोज 10/15 फोन आते रहतें है। एक साथ इतने फोन आनेपर इनको लगने लगता है, की हम बहोत स्पेशल है और हमारी बहोत डिमांड है। ये आलापन की अकड़न दिलो-दिमाग पर सवार हो जाती है। सामने वाले से सिदी बात नही की जाती। इसका नतीजा इन्हे और गहराई मे ढकेलता है, इसका एहसास होने तक वक्त हाथ से निकल जाता है।
             हमे हमारी वक्त की हद तैय करनी होगी। हमारे खाँहिशो को सही वक्त पर लगाम लगाकर, हकीक़त को पहचान कर कबूल करना होगा।
           इन्सानी फितरत - कभी भी किसी भी बात से मुतमईन न होना जो है।

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मॅचमेकर [ मदावती ] की बदमाशियां

मॅचमेकर [ मदावती ] की बदमाशियां
           तकरीबन सभी मॅचमेकर दोंनो पार्टी के फोन नंबर शेअर नही करते। और मिटिंग के वक्त दोंनो तरफ से खुद ही बात करतें है। मुझपर भरवसा है ना ? ये डायलॉग इनका तकिया कलाम होता है।
मॅचमेकर =   🙋🏻‍♂️
रिश्ते की तलाश वाले = 🤦‍♂️
        1]- मिडल-क्लास फैमिली, लड़की वेलएजुकेटेड
🙋🏻‍♂️- पहले 5000-/₹ , हर बार रिश्ता दिखाने के 500-/₹, रिश्ता तैय होने पर 10000-/₹ ।
          🤦‍♂️- Okey
          🙋🏻‍♂️- साहेब, बहुत अच्छा रिश्ता है।आपको जैसा चाहते हैं ठीक वैसा ही है। इस इतवार लाता हूँ। मैं ने मुकम्मिल बात की है। रिश्ता हाथ से जाने ना पाये। दोपहर एक बजेतक आते है, खाने का अच्छा इंतजाम होना चाहिए।हम तीन लोग होंगे लड़के के मां-बाप और मै। तो मिलते है इतवार को।
          🤦‍♂️- ने अच्छा इंतजाम किया, भरपेट खाना खा कर, और 500-/₹ लेकर 🙋🏻‍♂️- बोलता हूँ कहकर चले गए।
           आठ-दस दिनों के बाद 🤦‍♂️किसी काम से बाजूके कस्बे मे जाना पड़ा, उधर एक पंचर की दुकान पर 🙋🏻‍♂️के साथ आये कथाकथीत लड़के के वालिद मिले, पूछने पर बताया 🙋🏻‍♂️ वो हमारा भाई है, बोला तुझे और भाभी को संडे मस्त दावत खलाता हूँ, तो उसके साथ आया था। और मेरा कोई बेटा नही है।
      2] 🙋🏻‍♂️का दिया बायोडेटा और फोटो के हिसाब से हर बात परफेक्ट मॅच हो रहा तो तीन महीनों से हां-ना कोई जवाब नही। तहकीक़ात करने से पता चला, उस बायोडेटावाले लड़के का निकाह हुए दो साल होगये है, और 🙋🏻‍♂️ ये जनाब उसी का बायोडेटा दिखा दिखा कर पैसे वसूल कर रहें हैं।
        3]- 🙋🏻‍♂️- फोनपर 🤦‍♂️से- आप के बच्चे के लिए बड़ी मुश्किल से परफेक्ट मॅच मिला है। कल मेरे घर आ जाना पार्टी बाहर की है।
          🤦‍♂️- चले गए, बड़ी भीड़ थी, हर एक को बारी-बारी अंदर छोड़ा जा रहा था। बच्ची बड़ी खुबसूरत और पडी-लिखी परफेक्ट दिखाई दे रही थी,  मॅचमेकर के 500-/₹ और बच्ची के हाथ मे कुछ ना कुछ रखना ही था।
         थोडी देर मे हंगामा शुरू हुआ, आये लोगों मे से एक आदमी ने उस बच्ची को पहचान लिया। बच्ची अनपढ़, सोलापुर मे उसके साले के घर मे बर्तन मांजने का काम करती है। और उसके बायोडेटा मे MBA
         मांग के हिसाब से फ़र्जी बायोडेटा बनाना, अच्छे रिश्ते जल्दी होने ना देना, उन्ही को दिखा दिखा कर पैसे वसुल करना, पैसे लेने के बाद फोन ना उठाना, www.faiznikah.com और या दुसरे मॅरेज ब्यूरो के प्रोफाईल मे से फोन नंबर हटाकर अपना नंबर डालना। ये तो 🙋🏻‍♂️ इनके लिए आम बात बन गई है।
          कुछ हजरात इन नेक काम को सिर्फ और सिर्फ अल्लाह तआला को राज़ी करने के लिए कर रहें है। उनको www.faiznikah.com  की टीम सलाम करती है।

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ये कैसा आया जमाना

ये कैसा आया जमाना
         दोस्त,
     www.faiznikah.com का सर्वे बहोत चौका देने वाला आया है। आमतौर पर देखा जाए तो, एजुकेटेड और हायली- एजुकेटेड सिर्फ 15% लड़के अपनी पसंद से शादी करतें है। 85% लड़के अपने मां-बाप और / या भाई-बहन इनकी पसंद को तर्ज़ी देते है। मां-बाप और / या भाई-बहन मॅरेज ब्यूरो मे नाम दर्ज करने से लेकर लड़की पसंद करने तक सब काम यही करतें है। लड़का आखिर मे हां या ना मे जवाब देता है।
            के बरअक्स / इसके विपरीत एजुकेटेड और हायली- एजुकेटेड 90% लड़कियाँ अपना जीवनसाथी खुद पसंद करती है। और घरवालों को बताती है।
           मेरे मां-बाप और मेरे परिवारवाले है, तो वो मेरे खैरखाँ ही होगें, ये बात लड़कों के दिलो-दिमाग मे रहती है। ये बात मां-बाप भले अनपढ़ हो या पढ़े-लिखे हो इससे कोई फर्क नही पडता। ये बात सब नही मगर बहोत ज्यादा लड़कीओं मे नज़र नही आती। खासकर जिस लड़की के मां-बाप अनपढ या कम पढ़े-लिखे हो तो "इनको कुछ समझ नही आता" ये कहने से इनको ना हिचकिचाहट होती है, ना शर्म आती है।
               सारे जहां मे मै एक सयानी के भ्रम मे उम्र निकती जा रही है। बच्चों की इस हरकत से मां-बाप ऐसे फंक्शन अटेंड ही नही कर रहें जहाँ इनके बच्चों के शादी-ब्याह की बातें हो सकती है।

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कुत्ते को घी हजम नहीं होता

कुत्ते को घी हजम नहीं होता
            बहोत दिनों पहले एक कहानी पड़ी थी, एक राजा-रानी अपने लिए एक होनहार बहु ढूंढ रहे थे। एक दिन राजा-रानी शिकार पर गये, और उधर उन्हें देखा, एक आदिवासी लड़की सुखी लकड़ियों इकठ्ठे कर रही थी। पेड के उपर चढ़कर सुखी टहनी तोड़कर निछे फेकती, और खुद धड़ाम से कुद जाती। नाक नक्श एकदम सही और सेहतमंद, राजा-रानी एकदम खुश हुए। मन ही मन उसे अपनी बहु कबूल कर लिया। फिर उस लड़की के मां-बाप के इजाज़त से बड़ी धूमधाम से अपने लड़के के साथ शादी कर दी। सब बड़े खुश थे। मगर महिने दो महिने मे ही बहु कमज़ोर और मुरझाए सी दिखने लगी। बड़े डाँक्टर के चेकअप के बाद भी बीमारी पकड़ मे नही आरही थी। राजा-रानी के साथ सभी परेशान थे। सबकी समझ के बाहर था की, हर ऐशो-आराम, सुकून और खान-पान के रहते। बहु की सेहत बिगड़ती जा रही थी।
            शहर मे एलान किया गया। जो कोई राजा के बहु का इलाज कर उसे ठिक करेगा, उससे सन्मानित कर बड़ा इनाम दिया जायेगा। मुल्क के बड़े बड़े हकीम, डाँक्टर, वैद्य और दानिशमंद इनाम और सन्नमान के चक्कर में बड़ी कोशिश की मगर बहु के सेहत पर कोई अच्छा असर ना हुआ।
             एक दिन एक बुढ़ा दरबार मे हाज़िर हुआ, और कहने लगा " मैंने आपकी बहु के बारे मे सुना है। उसकी सभी मालूमात ली है। मै दावे के साथ कहूंगा के मै आपके बहु को 20/25 दिनों मे पूरी तरह से ठीकठाक कर दुंगा। मुझे आप के महेल के पास वाला विरान पडा खंडहर चाहिए। और कोई रोकटोक नही होनी चाहिए। राजाने हामी भर दी।
             तिन चार दिनों के बाद, बुढ़ा सुबह सवेरे दरबार मे हाज़िर होकर, बहु को साथ ले गया। और शाम महेल मे वापस ले आया। यही सिलसिला 15 दिन तक चलता रहा। और चमत्कार की तरह बहु की सेहत अच्छी होते गई। सारे हैरान-परेशान थे की ऐसी कौन सी दवा देदी जो बहु सेहतमंद और ख़ुशहाल नज़र आ रही है।
           जैसे एलान किया था, राजाने उस बुढ़े को सन्मानित कर बहुत सारा धन दिया। और पूछा महाशय, आप महान है। क्या मै जान सकता हूँ, के आपने कौन सी दवा खंडहर के अंदर रख्की जो मेरी बहु की लाइलाज बिमारी ठिक हो गई। आपको तो हमेशा खंडहर के बाहर ही देखा गया है।"
            बुढ़े का जवाब "कुछ नही महाराज, मैने पहले दिन उस खंडहर के अंदर के पेड़-पौधे, उँचे टूटे मीनारों और कमानों मे रोटियाँ, खाने के कुछ सामान और कुछ कच्चे पक्के फल डाल रख्के। फिर दो चार दिन जब खाना बासी हुआ, तब आपकी बहु को उस खंडहर के अंदर छोड़ दिया। नतीजा आपके सामने है।"
          कहानी सच हो या मनघढंत, मगर ज़िन्दगी की हकीक़त बयां करती है। हम बचपन से जिस माहौल मे बड़े हुए, वही हमे सही लगता है और पसंद आता है। वही माहौल हमे खुशहाल रखने मे कारगर साबित होता है।
        आज के दौर मे सिर्फ चेहरे की खूबसूरती देखकर रिश्ते हो रहें है। और जल्द ही बिखर रहें है। हमारे घर का माहौल, खान-पान, इलाका, ऐरिया, तौर-तरीके क्या है, पहले इस बात पर गौर करना होगा। और समाने वालों का यही सब बारीकी से मुशाहिदा [ Observation ] करने के बाद ही शौहर, बीवी, दामाद या बहु का इंतेखाब [ Selection ] करने से आगे की ज़िन्दगी खुशहाल होगी।
            इन सब बातों मे मां-बाप और बच्चों के आदत-अख़्लाक़ ही बढ़ी अहम कड़ी होती है। और ये आदत-अख़्लाक़ पर अमीरी गरिबी का कोई असर नही होता। बड़े और बच्चे समजदार, अच्छे अख़्लाक़, किरदारवाले और सही सोच रखने वाले होंगे तो वो गरीब हो या अमिर, कोई भी तबके से ताल्लुक रखते हो, नये माहौल मे अपने आप को जल्द ढालकर अपना और अपनों की ज़िन्दगी खुशहाल बना सकते है।
            एक बात मैं हमेंशा कहता आया हूँ की, सही सोच और अच्छे अख़्लाक़ पढ़ाई पर निर्भर नही करते। पढ़ाई से सिर्फ चीज़ों के नाम बदल जाते है। फितरत और आदतें नही।
            पिछ्ले दिनों जलसे के दौरान एक साहिब-ए-हैसिय्यतने [ मालदार ] बड़ी अजब बात कही, भाई हमारे घर मे खान-पान पर कोई रोकटोक नही है। 15 दिन मे एकबार पाव किलो गोश्त लाता हूँ, जितना खाना चाहते हो उतना खाओ कहता हूँ। अब ऐसे घर मे आम मुस्लिम बच्चे तो परेशान हो जाएंगे।

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नाउम्मीदी कुफ्र है

गर्दिश में हों तारे, न घबराना प्यारे
     अल्लाह का जो दम भरता है,
     वो गिरने पर भी उभरता है
     जब इंसान हिम्मत करता है
     हर बिगड़ा काम संवरता है
    उठ बाँध कमर क्या डरता है
    फिर देख खुदा क्या करता है
      बर्बादियों का ग़म मनाना फ़ुज़ूल है
      चला गया उसे याद करना फ़ुज़ूल है
      कुछ पल ख़राब हुए नसीब है
      अभी ज़िन्दगी बाकी है
      नाउम्मीदी कुफ्र है
      खुश रहना आपका हक्क है
      उठ बाँध कमर क्या डरता है
       फिर देख खुदा क्या करता है
            दोस्तो, इन्सान के तारे जब गर्दिश मे होते है तब, बहुत सारी ग़लतियां कर बैठता। हम इन्सान है, ग़लतियां हो जाती है। मगर इस का ये मतलब नही के हम ज़िन्दगी भर उसका अफसोस कर, हर दम मायूस और ग़मगीन रहे। माना के हमारे दिलो-दिमाग मे पूरानी मेमोरिज, यादों को डिलीट करने का कोई बटन नही है। मेरे साथ ही ऐसा क्यों ? मैंने किसका क्या बिगाड़ है ? मेरा कुला, मेरा तलाक होने मे सचमुच कौन जिम्मेदार है। ये सवाल बार-बार दोहरा दोहरा कर प्रेजेंट और फ्युचर खराब करने मे कोई मतलब नही।
           दुश्मन तो यही चाहता है, आप परेशान और गमगीन रहे। और आप ऐसा करकर उसको सपोट ही कर रहे हो। इस काले अतीत को नई खुशियों से ढककर जिन्दगी मे आगे  बढ़ाना ही अक्लमंदी है। हमे हमेंशा उम्मीदवार रहना है। याद रहे नाउम्मीदी कुफ्र है।
              आपकी ख़ुशियाँ दिल के दरवाज़े पर दस्तक दे रही है। उठो और नये से खुशियां समेट लो।
           इस ग़म की खाई पार करने के लिए www.faiznikah.com की टीम आपके साथ है। इंशाअल्लाह तारीख- 29- 30- और 31 मार्च 2024 को लगातार 3 दिनों के जलसे मे आपका नया और सही हमसफ़र ढूंढ़ने मे जरूर मदत होगी।

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कुदरत का कानून

कुदरत का कानून
              एक राजकुमार शिकार के दौरान अपने साथी सिपाहियों से बिछड़कर पड़ोसी राज्य मे चला गया। वहाँ के सिपाहियों ने उसे पकड़कर राजा के सामने खड़ा कर दिया। राजा को जब मालूम हुआ के ये पड़ोसी राज्य का राजकुमार है, तो राजा ने उससे माफी मांग ज़ंजीर निकाली। और सन्मान के साथ अपने नज़दीक बिठाकर सन्मानित किया। और कुछ दिन मेहमान बनने की दरख्वास्त की, राजकुमारने राजा की बात मान ली। अपने मुल्क मे खुद के खैरियत से होने का संदेश भेजकर, इस राज्य मे मेहमान बना रहा।
           इसी दौरान राजकुमार को राजा की बेटी से मोहब्बत हो गई। राजकुमार राजा के पास जाकर, उसकी बेटी से शादी करने की खाँहिश जाहिर की। पहले तो राजा खुश हुआ, फिर बोला युवराज इस रिश्ते से मुझे कोई आपत्ति नही, लेकीन एक परेशानी की बात है। मेरी लड़की याने राजकुमारी का रिश्ता दुसरे पड़ोसी मुल्क के राजा के साथ बचपन मे ही तैय हुआ है। इसलिए ये शादी नही हो सकती।
             राजकुमार बड़ा परेशान और गमगीन रहने लगा। राजकुमार के साथियों ने इस परेशानी से निकलने के लिए राजकुमारी को भगाने की सलाह दी। राजकुमार मान गया।
               राजकुमारी की इजाज़त से दोनों ने एक दिन मुकर्रर कर, भागकर शादी करने की ठान ली। और फिर राजकुमार भागने की योजनानुसार एक तंदुरुस्त घोड़े की तलाश शुरू कर दी। जल्द ही शहर के बाहर एक घोड़े का ताजीर [ व्यापारी ] मिला।
              राजकुमार उस जगह जाकर घोड़ों की जांच पड़ताल करने लगा। सभी घोड़े ठीक-ठाक थे और किमत भी मुनासिब लग रही थी। सब से हटकर एक कोने मे एक घोड़ी बांध कर रख्की थी, जो औरों के मुकाबिल काफी सेहतमंद और खुबसूरत थी। राजकुमार ने जब उसके दाम पूछे तो मालिक ने बहोत ही कम किमत बताई। एकदम कौड़ी के दाम सुनकर, राजकुमार ने मालिक से इतनी कम किमत का सबब पुछा।
           मालिक का जवाब महाशय, इस घोड़ी की नानी की मां एक बार जंग के दौरान पानी मे गीर गई थी। तब से वो पानी को देखकर डरती है, और बेकाबू [ बिथर ] हो जाती थी। फिर इसकी नानी और मां मे भी दुर्गुण आ गया, और अब इसमे भी यही दुर्गुण जैसे के वैसे आ गया है। इस लिए इसकी किमत इतनी कम है।
              न जाने क्या सोच कर राजकुमार वो घोड़ी खरीदकर अपनी मोहब्बत राजकुमारी को छोड़कर अपने मुल्क चला गया।
            अब मै आपसे सवाल करता हूँ, क्या राजकुमार का फ़ैसला सही था या गलत ? राजकुमार ने क्या सोचकर अपना प्यार अपनी मोहब्बत- राजकुमारी को भगाकर शादी करने का फ़ैसला क्योंकर रद्द कर दिया ?
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                 जी हां दोस्तो राजकुमार का फ़ैसला एकदम सही था। उस पानी से डरकर बेकाबू होनेवाली घोड़ी का इतिहास को वो अपने ज़िंदगी में दोहराना नही चाहता था। राजकुमार ने सोचा मै आज इससे भागकर शादी कर लेता हूँ तो, कल मेरी बेटी / बेटा भी यही करेंगे। और यही बात सिलसिलेवार चलती रहेगी।
            आज हम जानबूझकर जो गलत-सलत काम करतें है, वो पलटकर कल हमारे सामने आ ही जाता है। आज का पलभर का समाधान और मज़ा, हमारे बच्चों को वही सही लगने लगता है। और उसी को करने पर उकसाता है।
      कुदरत का कानून बड़ा सिदा है।
      जो बोओगे वही उगेगा
      बो के पेड़ बबूल का दोस्तो
      उसे आम का फल नही लगेगा

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तलाक और ख़ुला- बुनियादी फर्क

 दोस्तो, शादी के बाद जब अनबन हो जाती है, तब हमारे सामने, मियां-बीवी के अलग होने के दो रास्ते होते है। एक तलाक और दुसरा ख़ुला। दोनो तरफ से यदी ये शरीअत के दायरे मे रहकर करने से वक्त, इज्जत, पैसा की हिफाज़त तो होती ही है, साथ साथ शारीरिक और मानसिक मनस्ताप से भी बचाया जा सकता है।
           तलाक की बात कहें तो हमारे सामने तीन तलाक की बात आती है। पहले वक्त दिया गया तलाक शौहर 1 बार बोले या 1000 बार वो एक ही गिना जाता है। [ 1 वक्त मे 3 बार तलाक बोलने से तलाक होता ही नही ] इस का वक्त 3 महिने का है। इस दौरान मियां-बीवी एक ही छत के निछे रह सकते है, और इस दौरान दोंनो मे सुलह हो जाए और हमबिस्तरी हो तो वो दिया हुआ तलाक अपनेआप रद्द हो जाता है। हां गर कोई बातचीत नहो, शारीरिक संबंध ना हो, और शौहर अपनी बात पर अडा हो तो वो तीन महिने के बाद 2 सरा तलाक दे, तो फिर मियां-बीवी एक दूसरे के लिए हराम हो जाते है। इस दौरान यांने 3 सरे तलाक से पहले फिर इन दोनो मे सुलह हो जाती है। तो नये महेर के साथ निकाह पढाना फर्ज बन जाता है। इस मे हलाला की कोई जरूरत, नही।
            हलाला- तीन तलाक के बाद मियां-बीवी में सुलह हो जाने पर भी वे एक साथ नहीं रह सकते. एक साथ रहने के लिए बीवी को किसी दूसरे मर्द से शादी कर हमबिस्तरी/ शारीरिक संबंध बनाने होते हैं, और फिर यदि वो 'खुला' या तलाक़ के ज़रिए अलग हो जाने के बाद तो वो अपने पहले शौहर से दोबारा शादी कर सकती है. इसी को हलाला कहा जाता है।    
   [ हलाला एक प्रथा है। कुरआन मजिद मे इसका कहीं भी जिक्र नही आया है]
           ख़ुला- बीवी जब अपनी मर्जी से शौहर से अलग हो जाती हो, तब उसे ख़ुला कहा जाता है। इसमे उसे अपने शौहर के साथ साथ महेर को भी छोड़कर अलग होना पढता है। मगर वो जब चाहे अपने शौहर की मर्जी से वापस उसी शौहर और निकाह के साथ वापस आ सकती है। इस मे कोई शर्त नही।
           जल्दबाज़ और नासमझ फैसले आगे चलकर अक्सर खौफनाक और मुसीबत साबित होते ही है। तलाक / ख़ुला होने के बाद समाज, दोस्त-अहबाब और रिश्तेदारों का कुछ वक्त का तमाशा-ए-अहल-ए-करम तो देख ही लिया होगा। अब फैसला आप ही को करना है। वक्त रहते संभालने मे भलाई है। अफसोस, पश्चाताप के आँसू हर दूरी मिटा देते है।
            मेरी राय मे सिर्फ और सिर्फ जान का ख़तरा हो तो ही, तलाक या ख़ुला लेना चाहिए।  वरना हर बात बातचीत से हलहो सकती है।
             ख़ुला मे वापस उसी शौहर के साथ उसी निकाह के साथ उसी महेर के साथ, पुरानी गलतियों और खामियों को नजरअंदाज करके, हसते-खेलते ज़िन्दगी गुज़रना सही है या फिर नये के साथ नया एक्सपेरिमेंट करना अक्लमंद है?

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बहु या कामवाली बाई [ www.faiznikah.com के किस्से ]

 लड़की की अम्मी- मुझे और कुछ नही, बस इतना पूछना है। शादी करते वक्त आपने हमारी लड़की को बेटी बनाकर रखने का वादा किया था। आपने बेटी, बहु बनाना तो दुर आपने हमारी बेटी को कामवाली बाई बना दिया है। सुबह से रात तक काम ही काम। लड़की की मां बड़े जोश और घुस्से मे सामने बैठे समदन से बोल रही थी। समदन सारी बातें ख़ामोशी के साथ सुन रही थी। शादी को अभी तीन-चार महीने ही हुये है। और ये हंगामा चालू हुआ। ऑफिस के अंदर का माहौल काफी गर्म हो गया था। दोनो समदी एक कोने मे आज की सामाजिक और राजनीतिक हालातों पर बाते कर रहे थे। ऑफिस के बाहर गैलेरी मे कुछ दिन पहले मियां-बीवी बने अपने ही बातों मे मशगूल थे। सभी के हाव-भाव और जिस्मानी जबान से लग रहा था के, सिर्फ लड़की के मां को छोड़कर किसीको कोई किसी बात का ऐतराज नही।  
          एक भयानक सच- 70% से ज्यादा बेटियों का घर तोड़ने मे मां एहम किरदार निभा रही है। ये इल्ज़ाम नही आज की सच्चाई है। मगर इस बात का दुसरा पहलू देखना भी जरूरी है। जब कभी कुछ अनबन होती है, तो मर्द औरत को आगे कर देंते है। ये कह कर की ये औरतों का मामला है, तुम हि निमट लो और सारी ज़िम्मेदारी मां पर आती है। और दुनिया को ये मां की करतूत लगती है। बेटियां भले ही अब्बु की प्रिंसेस, लाड़ली क्यों ना हो, मगर मां राजदार होती है। मां-बेटी का रिश्ता सुख और दुख का मिला-जुला और अतुट रिश्ता होता है। मां अपनी बेटी के ऐहसासात को, जरूरतों को, दुख दर्द को अच्छी तरह जानती समझती है। कोई भी मां जब अपनी बेटी की शादी करती है, तो अपनी बेटी तो दे देती है, लेकिन उसकी फ़िक्र को अपने पास रख लेती है। ये कुदरतन है, बेटी का बचपन से पूरा ध्यान रखा। 20/25 साल लाड-प्यार से संभाल के बाद किसी अजनबी को देना, और फिर उससे कोई वास्ता ना रखना। ऐसा मुमकिन तो नही। मगर कोई हद तो होनी चाहिए। दिन मे 4/5 बार फोन कर हर छोटी-बड़ी बात पर अपनी राय देना, बार बार मायके बुलाना, दुसरों के ससुराल से कंपेयर करना, अपनी मांजी की आपबीती सुना सुना कर मोजूदा रिश्तों मे शक़ पैदा करना। इन बातों को बहोत हद तक रोका जा सकता है।
          खैर, सभी को एक साथ हाॅल मे इकट्टा कर कहा- मैंने इन दिनों की बात सुनी। अब आप को मेरे कुछ सवालात के जवाब जिसको पूछा जाए सिर्फ वही जवाब देगा। ठीक है, सब ने हामी भर दी।
         लडके वालों से- ये बोल रहें है की आपने इनकी बेटी को कामवाली बाई बनाकर रखा है, अपनी बहू को अपने घर का काम कराने के बाद और कितने घरों में घरकाम करने के लिए भेजते हो मेरे सवाल से माहौल एकदम बदल गया। लड़के के वालिद बड़े तैश मे आये- कैसे उटपंटाग और बेतुका सवाल कर रहे हो। हमारे घर की बहु दुसरों के घरमे कामकरने भेजे इतने भी गए-गुज़रे नही है हम। इस इल्जाम से अच्छा है, मर जायें।
          लड़की की मां- नही भाई मेरा मतलब ये नही था।
           मै-तो क्या था? कामवाली का मतलब क्या होता है। आप अपने संसार के लिए अबतक जो करते आये हो,तो क्या आप कामवाली बाई बन गए। अपने परिवार के लिए किया कोई भी काम, काम नही होता, इसमे अपनेपन का ऐहसास होता है। और बच्ची अपने खुद के घर का काम ही तो कर रही है। आसपास नज़र दौड़कर देखो, बड़े सफ़र की भागदौड और दिनभर ऑफिस मे कामकाज के बावजूद बहुत सारी बहुएं सिर्फ प्यार और परिवार के लिए क्या क्या सैक्रिफाइस कर रहीं है। शुक्र मनाओ आपकी बेटी तो बड़ी नसीबवाली है।
          शुरूआती दिनों में ससुराल मे लड़की एकदम अकेलापन महसूस करने लगती है। नये चेहरे, नया माहौल, नये रिश्ते, नये रिती रिवाज। इस बीच वो सिर्फ और सिर्फ तुम्हें याने अपनी मां को ही अपना हमदर्द और ख़ैर-ख़्वाह समझती है। वो शिकायत नही करती, वो तो हालात बताती है। ताकी आप अपने तजुर्बा से उचित, सही राह दिखाओ। इस वक्त आपकी ज़िम्मेदारी बनती है, उसे सही राह दिखावे। बेटी की शादी के बाद, मां-बेटी के इस रिश्ते को एक नए सिरे से संवार ने की जरूरत होती है। आपकी सही राय से आपकी बेटी का घर आबाद रहेगा और बेटी मायके और ससुराल दोंनो जगह सबकी लाड़ली बनाकर रहेगी।

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बुलाया तो तकलीफ ना बुलाया तो कयामत

आज जो आपको बताने जा रहा हूँ, वो किसी एक वक्त, एक जगह या एक रिश्ते का किस्सा नही। ये हमे अक्सर देखने मिलता है। ये उन बच्चों के रिश्ता तैय करने के वक्त होता है, जिन बच्चों के मां-बाप दोंनो हयात ना हो, या सिर्फ़ इनमे से कोई एक हयात हो। उस वक्त कोई जिम्मेदारी से बात करने के लिए, वो अपने क़रीबी को बुलाकर बैठक मे  बिठा देते है। और हां जब सिर्फ मां हयात हो तब इनकी अहमियत और जरूरत और बढ़ जाती है।
          कुछ अमल पसंद लोग भी है, जो अपनी ज़िम्मेदारियों को बड़े बेहतरीन तरह से निभा रहें है।
             14/15 सालों मे पेश आये हकिकी किस्सो का मुआयना [अवलोकन] करने से कुछ बातों सामने आयी वो आज आपके सामने रख रहा हुं।
     1] ये जिम्मेदार कभी भी तैय वक्त पर नही आते। आधाएक घंटा देरी से आते है। आते ही अपना बिजी शुडूल बताने मे और वक्त बर्बाद करने के वो हकदार बन जाते है। बाज़ मर्तबा आते ही नही। [ तुम बातचीत शुरू करो, मै अभी पहुंचता हुं। ये डायलॉग अक्सर सुनने मिलता है। ]
     2] इनको मौके की नज़ाकत का कोई अहसास नही होता। ना सर ना पैर के सवालात पूछे जातें है। एक ही सवाल थोड़े थोड़े देर के बाद पूछना, इसका मतलब इस बैठक मे आप का तवज्जोह नही है।
     3] इनको लगता है, अपनी और अपने बच्चों के कामयाबी के क़िस्से सुनाने की सबसे बड़ीया यही जगह और वक्त यही है।
     4]  लड़का/लड़की कोई भी फील्ड से हो, उस सब्जेक्ट मे ये मास्टर के तौर पर बात करतें है।
     5] इनके पास रिश्तों मे धोखाधड़ी के दर्जनभर किस्से होते है।
     6] दो दिलों को, दो खानदानों को जोड़ने की मिटिंग है, इस बात को नजरअंदाज कर, ये एक बिजनेस मिटिंग है। इस तरह फायदे-नुकसान की बातें करते रहते है।
     7] मिटिंग मे आने से पहले, आपका फोन तो नही उठा रहे थे, अब मिटिंग शुरू होते ही हर फोन उठाकर जोर जोर से बातें कि जाती है।
           और भी बहोत बेफ़िज़ूल और बेतुके बातें होती है। सिवाय रिश्ता जोड़ने के।  
           इन जिम्मेदारों के दिलो-दिमाग मे एक सवाल बैठक खत्म होने तक उठता रहता है। अबतक किसीभीव बड़े काम और फ़ैसले के वक्त नही बुलाया! अब क्या जरूरत आयी ? अब ही क्यों बुलाया ?
          विडो भाईओ और ख़ासकर विधवा बहनों से गुजारिश करूगा, की आप हि इन बच्चों के सच्चे खैरखाँ है। ये भी सही है, की इनको बुलाना आपकी मजबूरी होती है।दुनियादारी के हिसाब से इन जिम्मेदारों को बुलाना ही पढ़ता है।
           लेकिन बराय मेहरबानी डिसीजन अपने हाथ मे रखकर ही बातचीत सुरू करें। सामने वाले का कॉन्टेक्ट नंबर किसी और को देना, बेवकूफ़ी होगी। कोई और जो भी हो, वो अपनी सहुलियत और अपने हिसाब से बात करेगा। रिश्ता तुट जाए या नाराज होकर लौट जाए, इस बात से इनका कोई नुकसान नही होता, नाही कोई सरोकार होता है।
          जो बच्चे यतिम है। वो होनेवाले रिश्तेदारों से खुल कर बात करे। अपने कामकाज की जगह जिस तरह से बात करतें है, ठीक उसी तरह। आप भी पढ़े-लिखे हो, समझदार हो। अपना भला-बुरा जानते है। आपकी वो उम्र नही रही, जिस उम्र मे सिर्फ बातों से फंसाया जाए। वो जमाना कबका गुज़र गया। लड़की / लड़का खामोश रहें, और सब बातें करें।

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मेरे अपने

दोस्तो, एक जीवविज्ञान सायंटिस्टने पानी मे रहने वाले सभी जैविक प्रजाती का अध्ययन करने की ठाणी। सब से पहले उसने एक जाल खरीद लिया। वो अलग-अलग जगह के पानी मे जाल डालता और जो भी जीवजंतू उस जाल मे फंस जाते, उनका बारीके से निरीक्षण कर उसकी मालूमात अपनी डायरी मे नोंट कर लेता था। साल दो साल मे उसने हजारो जलचर का डेटा इकट्ठा कर लिया। जब उसे महसूस हुआ, इन अनमोल मालूमात की एक किताब बननी चाहिए। तब उसने किताब कि प्रस्तावना मे सबसे पहले सारे जलचर एक इंच से बड़े होते है। इस वाक्य से सुरूवात की। क्योँ के उस के जाल मे कभी भी एक इंच से छोटा जिव दिखाई ही नही दिया था। उसकी बात उसके हिसाब से सोला आने सच भी तो थी। ये उसकी एक महान खोज है, ऐसे भ्रम मे था। जब दुनिया के सामने ये बात आयी तो वो और उसकी महान खोज मज़ाक बन गई। उसका दावा खोखला निकलने से सारी मेहनत जाया हो गई। सायंटिस्टने कडी मेहनत-मशक़्क़त, बड़े इमानदारी और लगन से रिपोर्ट बनाई थी। फिर ग़लती कहाँ हुई? ग़लती यही थी, जो जाल वो इस्तेमाल कर रहा था वो एक इंच का था। उस जाल मे सिर्फ एक इंच से बड़े जानदार पकड मे आते थे, जिसका अध्ययन कर कर के इन्होंने ये थेरी डिक्लेअर कर दि थी। अब गौर करने वाली बात ये है की, हमने अपने दिलो-दिमाग मे किस साईज के जाल को बिठा रखकर, या किस रंग का चष्मा चढ़ा कर अपना, अपनों का या पुरे मुआशरे का निरीक्षण या अध्ययन कर रहें है। और किस नतीज़े पर पहुँच गए है। हर एक अपने नज़रिए से देखकर टिप्पणी करता है। मगर जब तालीम ए आफ्ता, मुआशरे के जिम्मेदार, स्कूल और कालेज के प्रिंसीपल, टिचर्स से जब ये सुनने मिलता है की,ये लोग कभी नही सुधरेंगे, इनका कुछ नही हो सकता, ये फाली मे बिगड़े है कफन मे सुधरेंगे। तो इनकी सोच कितनी पूर्वाग्रह से ग्रासित है /prejudice [ कोई मामला या व्यक्ति के तथ्यों की जाँच किये बिना ही राय बना लेना या मन में निर्णय ले लेना।] इन की सोच पे लानत भेजना जरूरी हो जाता है। मेरे साथ हुए वाक़िया बताना चाहूँगा, मेरा लड़का जब 6 कक्षा मे था उस वक़्त उसके इतिहास के टीचर ने पढ़ाया की सारे आतंकवादी मुस्लिम होते है। जब बच्चे ने ये बात मुझे बताई तो, मै हैरान-परेशान हुआ, स्कूल का मॅनेजमेंट मुस्लिम, टिचर मुस्लिम फिर भी? मै तुरंत प्रिंसीपल के ऑफिस पहुंचकर इस बात का जवाब तलब किया। प्रिंसीपल टिचर को समझाने के बजाये, मुझे ही समझाने लगे। एक मुस्लिम साहित्यक है। जिनकी 11 किताबे प्रकाशित हुए है।जिस मे हर कहानी का खलनायक मुस्लिम ही लिखा है। मैंने जब इसका सबब पूछा तो बड़े बेशर्मी से कहने लगे ऐसे लिखने से ही गव्हर्नमेंट का एवार्ड मिलता है, और के फंक्शन मे बुलाते है। कुछ महाभाग तो बेधड़क कहते फिरतें है, कि मै मुसलमान ना होता तो कहाँ के कहाँ पहुँच जाता। यही आदत, खासियत 10/12 साल पहले तक पिछड़े जाती के समुदाय मे थी। उनमे से जो भी पढ़ लिख कर ऊंची पोस्ट पा लेता था, तुरंत अपनो से संबंध तोडकर अलग-थलग रहने लगता। मगर आज वही बड़ी शानो-शौकत से बढ़चढ़कर के जुलूस मे शामिल होता है। याद रहे, जुल्म करने वाला सिर्फ हमारा लिबास और नाम देखकर जुल्म कर रहा है। उसे आपकी सोच और रहन-सहन से कोई सरोकार नही। सच्चर आयोग की रिपोर्ट हो या अन्य कोई, हमे पता चला बस है। अब हमे ये सोचने और कुछ करने कि जरूरत है, हम अपनी कौम के लिए क्या कर सकतें है ? अब कोई नही आने वाला हमारी मदद के लिए। अब हमें ही एक दूसरे का सहारा और हिकमत देने का काम करना है। सब से पहले हमें दिलो-दिमाग से सारे निगेटिव्ह सोच विचार को हटाकार उसके बदले प्यार-मोहब्बत, हमदर्दी और अपनेपन का एहसास जगाने की जरूरत है। जरा रूककर अपने-आप से सवाल करना। जो पढ़े-लिखे नौजवान जेल मे बंद है, वो क्योंकर उधर है ? उनका मक़सद क्या है ? तो जवाब मिल ही जायेगा। उनका निजी स्वार्थ कुछ भी नही है, उन्होंने बस अपने ज़मीर की आवाज सुनी बस और कुछ नही। 7/8 साल से बहोत सारे तंज़ीमें और बहोत सारे लोग वैयक्तिक तौर पर एजुकेशन पर काम कर रहें है। उसके अच्छे नतीज़े अब दिखाई दे रहे है। पिछ्ले दिनो शाहीन अकॅडमी ने स्कूल और मदरसा से ड्राॅप आऊट बच्चों के लिए एक स्कीम चालु की है, उस बच्चे की पूरी मुक्कमल तालीम होने तक, उसका रहना खाने की ज़िम्मेदारी शाहीन अकॅडमी की होगी। ड्राॅप ऑऊट का मतलब होता है, किसी भी वज़ह से अपने मक़सद को आधुरा छोड़ना। और खुद को नाकारा, निठ्ठल्ला घोषित कर देना। मगर जिस तरह हम अपनी औलाद को बार बार नाकाम होने के बावजूद, कुछ ना कुछ ढंग का करने का प्रयास करते ही रहतें है, क्यों के वो अपना खुन है। ठीक इसी तरह से जब हमारे दिलो-दिमाग मे ये एहसास जगाऐ के ये भी हमारे अपने है, तो कुदरतन इन मे की अच्छाई दिखाई देने लगेगी, इनको समझना आसान हो जायेगा। और समझाना भी। याद रहे, ना ऊम्मिदी कुफ़्र है। तो आवो आज से अपनो की अच्छाई पर गौर करते हैं। आळी मे जो एकदो आम सड़ने की कगार पर हैं उन्हें धो धाकर, पोचपाच कर फिर से चमकदार बना देतें है। आप सभी ने " दो आँखें बारा हात " तो देखी ही होगी, उतने तो खुंखार, गऐगुजरे और जालिम तो नही हमारे नौजवान। इंतेखाब फराश संपादक स्पंदन बहुभाषिक त्रैमासिक
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अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह व बरकातह

अस्सलाम वालेकुम रहमतुल्लाह व बरकातह
           अमल पसंद लोग जो हमारे मुआशरे का सरमाए इफ्तेख़ार है, जो समाज को और ऊंचा और बेहतर बनाता है।
          आज हमको हम सबके पैगंबर हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम के बतलाये रास्ते पर चलने की जरूरत है। तब ही हम दुनिया के सामने बेहतरीन मुआशरे की मिसाल बना सकते है।
          जो हज़रात इन बिगड़े हालात मे भी सुन्नत तरीका अपना कर, एक साथ दो दो बीवीओं को अपनाकर ख़ुशहाल ज़िन्दगी गुज़र बसर कर रहें है। बेशक अल्लाह तआला इनको इसका अज्र जरूर देंगे ही।
          www.faiznikah.com की पूरी टीम इनको सलाम पेश करती है। साथ ही साथ हाजी मोहम्मद इसहाक फराश फाऊंडेशन के www.faiznikah.com  के जानिब से " फख्र ए मिल्लत " के ख़िताब से नवाज़ा जाऐ, ये तय किया गया है।
          जो हज़रात ने इस सुन्नत को अपनाये हुए है, वो 95038 01999 इस नंबर पर अपनी मालूमात व्हट्सएप पर टाईप करके भेज दे।

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okay.. मॉडर्न सायन्स के हिसाब से

okay.. मॉडर्न सायन्स के हिसाब से
     
                    हम पढ़े-लिखे और साहिब ए हैसियत है, इस दिखावे की खतीर कुछ सयाने लोग मज़हबी बातो को दक़ियानूसी मानकर मगरीबी सफ़ाकत अपनाए हुए है। तो चलो जिसे जो भाषा समझमे आती है, उसी भाषा मे बात करतें है।
                    प्रसिद्ध गयनेकोलॉजिस्ट नवनीत सेन, [ FICOG, अनुभव : +42 साल ] के और माॅर्डन सायन्स के हिसाब से औरत की तंदुरूस्त और सेहतमंद बच्चा पैदा करने की सब से बेहतरीन उम्र 20 से 30 साल की ही होती है।
               औरतें बच्चों के करोडो अंडों के साथ ही पैदा होती है, जो आगे चलकर काम आते है। लेकिन हर साल इनके अंडे आहिस्ता आहिस्ता कम होते जाते है। लगभग 40 की उम्र तक ये पूरी तरह से खत्म हो जाते है।
                  एक और एक्सपर्ट डॉक्टर गरिमा शर्मा कहती हैं कि 30 साल से ज्यादा उम्र होने पर अगर डिलीवरी होती है तो बच्चे में जिनीयाती खुसूसियत मे गैरमामुली बदलाव आने की अंदेशा बढ जाता है. [बच्चा अबनॉर्मल, अपाहिज या मतिमंद होने की संभावना]
                    उम्र बढ़ने के साथ ही अन्य बीमारियों के खतरे भी होते हैं. 30 के बाद हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज (मधुमेह, शुगर ) जैसी बीमारियों के रिस्क बढ़ने लगते हैं. इसके कारण प्रेग्नेंट होने में दिक्कतें आ सकती हैं।  
                     इन परिस्थितियों में अगर कोई हामेला औरत [प्रेग्नेंट] है, तो बढ़े हुए हाई ब्लड प्रेशर या डायबिटीज से हमल गिरने [गर्भपात] का खतरा बहुत बढ़ जाता है. ऐसे में प्री टर्म बर्थ की भी आशंका रहती है। साथ-साथ प्रेसेंट प्रेविया, स्टीलबर्थ, सिझेरियन डिलीवरी, डिलीवरी के बाद भारी खून बहना, बच्चे का पैदाइश वजन कम रहना जैसे परेशानीओ का भी सामना करना पडता है।
                   ये माना के औरत बच्चे पैदा करने की मशीन नही है, मगर औरत का औरत बनने मे उसे मां बनना एक लाज़मी शर्त भी तो है। करिअर और हमारी सोच ने हमने बच्चों को कीस खाईमे धकेलने की तयारी कर रहें है, अल्लाह ही बेहतर जानता है।

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दीनदारी की मांग

नासिक के जलसे मे एक एक्स प्रिंसीपल ने अपने कुंवारी डॉक्टर बेटी के प्रोफाईल मे एक्सपेक्टेशन के काॅलम मे दीनदार दामाद चाहिए लिखा। बड़े दिनों के बाद ये देखकर दिल बाग बाग हो गया। नही तो अक्सर धोका खाने और तलाक होने के बाद ही, दिनदार दामाद या बहु की तलाश होती है।
                     दुनियावी चकाचोंद और जगमगाहट के सराब [ मृगजल ] के पीछे अपनी और अपनों की ज़िन्दगी और सुकून बर्बाद कर लेने के बाद, हकीक़त आशकार होती है। दीन से दूरी की किमत बड़ी और भारी होती है।
                    एक झटके मे दुनिया की हैसियत ए अलामत [ टेटस सिंबल ] को देखने के नज़रिए मे बदलाव आ जाता है। खूबसूरती, एज्युकेशन, बड़ी पगार,
बड़ा खानदान और मुआशरे मे की समाजी हैसियत धरे के धरे रह जातें है।
                       बच्चों को हम खुद मानो एक्सपेरिमेंट मे इस्तेमाल किए जाने वाले गिनी पिग की तरह इस्तेमाल कर रहें है।
                     ये नही तो वो और वो नही तो ये। सब कुछ लुटा कर होश मे आने के बाद दीनदार। इस तरह बच्चों की ज़िंदगी दाव पर लगाने से पहले अपनी अक्ल और तजुर्बा इस्तेमाल कर बच्चों को डिप्रेशन और बर्बाद होने से बचाना होगा।
                       माना के आप अभी नातजुर्बाकारी हो, ये आपका पहला रिश्ता है। मगर आंखे खुली रखकर दिखेंगे तो, आप को खुद ब खुद समज जाओगे की बच्चों के ख़ुशहाली के लिए दीनदार हमसफ़र कितना अहम और ज़रूरी होता है।

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अती शहाणा त्याचा बैल रिकामा

[ हद से ज्यादा की अक्लमंदी, गलत फ़ैसले लेती है। इस आमतौर पर देड़ शहाणा भी कहते है। ]
         दोस्तो, आज अचानक ये मराठी कहावत याद आने की एक बड़ी वज़ह ये है की, हाल ही मे आया एक सर्वेक्षण। उस सर्वेक्षण मे खौफनाक हकीक़त सामने आई है
      96% वो है, जीन लड़कियोंने बिना निकाह के 30 साल से आगे की उम्र पर कर लि है, उनके मां-बाप एजुकेटेट, हायली एजुकेटेट, बड़ी पोस्ट पर जाॅब, मुआशरे के जिम्मेदार और स्कॉलर्स है।
         इस मे अमीर-गरीब का कोई मसला नज़र नही आता, हां अलबत्ता पढ़ाई का घमंड जरूर दिखाई देता है।
        बकवास है, ये सर्वेक्षण कहकर दिल को झुटी तस्सली देने से पहले या इस बात को नजरअंदाज करने से पहले अपने आस-पास और खानदान पर नज़र दौड़ाने से हकीक़त खुद ब खुद सामने आ जाएगी।

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खेल स्टेट्स का

  बड़ी अच्छी बात है के, हाय क्लास, मिडल क्लास के साथ-साथ अब लोअर क्लास के पेरेंट्स मे भी बच्चों की पढ़ाई को लेकर बड़ी अवेयरनेस (जागरुकता) आयी है।
      हमारी ये हालात सिर्फ और सिर्फ ना पढ़ने से हुई है, मै पढ़ा लिखा होता तो कहाँ से कहाँ पहुँच जाता ऐसे बातों और सोच को लेकर मां-बाप  दिन-रात एक करके बच्चों को पढ़ाई के सारी सहुलियत मोहिय्या करा देतें है।  बच्चे भी मां-बाप की मेहनत मशक्कत को रायगा जाने नही देते, दिल लगाकर पढ़कर मां-बाप का खाँब पुरा करने की कोशिश मे लग जाते है।
         बच्चों ने मुक्कमल तालिम हासिल कर ली तो जाहिर है, बच्चों के साथ साथ मां-बाप का स्टेटस भी ऊँचा हो जाता है।
         अब जब बच्चों के शादी-ब्याह की बात आती है, उस वक़्त घर तक चलकर आऐ आसपास के, जानपहचान के और खानदान के रिश्ते बहोत छोटे और बेकार नज़र आने लगतें है।
        क़ुदरत का निज़ाम ही ऐसा है, ऊंचाई से हर चीज छोटी नज़र आती है।
         आसपड़ोस, जानपहचान और खानदान के रिश्तों को नजरअंदाज करके, बाज़ मर्तबा बेईज्जत कर के ठुकरा दिया जाता है। ये दिलजले, आपकी बात को और मिर्च-मसाला लगाकर आगे बढ़कर आपकी शौहरत मे इज़ाफा करते फिरतें है।
         हाय क्लास के रिश्तों की उम्मीद और तलाश मे हातसे शादी की उम्र कब फिसल जाती है, ये पता ही नही चलता।
        बेशक बच्चों को एज्युकेशन देना, बच्चो के लिए अच्छा रिश्ता देखना, हर मां-बाप का फर्ज है।
         तालीम एक रोशन चिराग है, उसकी रौशनी मे अपनी और आपनो की जिंदगी मे ख़ुशहाली, उजाला भर देती है। लेकिन इंसान की नासमझी / लापरवाही के चलते सबकुछ बर्बाद भी कर सकती है।

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सुपुर्दे खाक होने से पहले....

 दोस्तो, हर मां-बाप की खाँहिश यही होती है की, अपने बच्चों की ज़िन्दगी आबाद और खुशहाल रहे। बिना कोई जाती फायदे के वो हर काम करतें है। पैदाइश से लेकर अपनी आख़री सांस तक सिर्फ और सिर्फ बच्चों के मुस्तक़बिल और ख़ुशहाली के फिक्रमंद रहते है। बच्चों के दिल की बात, बिना बताए समझने की एक अजब खूबी अल्लाह ताला ने हर मां-बाप डाल रक्खी है।
           बच्चें जब शादी-ब्याह के लायक हो जाते है, तब घर-परिवार मे मशवरा, बातचीत के दौरान उन्हे पूंछने पर शर्म के रहते अक्सर मना किया जाता है। [ भले दिल मे लड्डू फूटे ]
            सिर्फ मां-बाप ही इनकी ना का मतलब बख़ूबी जानते है। लाख मना करने के बावज़ूद शादी करने पर ज़ोर देकर अपना फर्ज अदा करने की कोशिश करते रहते है। बच्चों की नाराज़गी का कोई खौफ उनपर असर नही करता।      
            खुदा ना खास्ता गर दोंनो मे से एक या दोनो का बच्चों का निकाह करने से पहले इन्तेकाल होता है, तब की सुरत ए हालात बड़े खतरनाक बन जाते है।
          ये हकीक़त है, मौत का एक दिन मुअय्यन / तैय है। पर कब, किसे और कहाँ से रुखसत होना है कोई नही जानता।
            एक कड़वा सच     
             मां-बाप जितनी जोर-जबरदस्ती  करतें / कर सकतें है, उतना दुनिया का कोई रिश्तेदार करता नही या कर सकाता नही।

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हिकमत

          दोस्तो, दो क़िस्से आपके सामने पेश करना चाहता हूँ।
           1] तीन चार महीने पहले की बात है। एक शख़्स ऑफिस आकर कहने लगे, "भाई शादी होने के बाद जब लड़की देड़ दो महिने के बाद मायका आयी और फुटफुट कर रोने लगी, कहती है, जबसे गई है, तबसे आजतक पेठ भर खाना नही खाया। वज़ह पूछने पर अजिब सा जवाब मिला, वो राशन के चावल खाते है, और मुझे खाया नही जाता।
         वालीद- बहोत परेशान हूँ, क्या करें? भाई कुछ समझ मे नही आ रहा है, बच्ची के ससुरालवाले वैसे तो साहिब ए हैसियत है, फिर भी इतनी कंजूसी की हद है। उधर अनाज भेज दुं क्या?
          मैं- पहले तो अपने बेटी को ये अच्छी तरह समझाओ की अब वही घर उसका अपना घर है, और घर की इज्ज़त को यूँ ना उछाले, और आप ये जान लो की .. कुछ लोगों की आदत होती है, कुछ लोग शौक़िया तौर पर और कुछ लोग सेहत की खातिर इसका इस्तेमाल करते है। इसे कंजूसी नही कहा जा सकता।
             अनाज तो देना है, पर तरीक़ा अलग होना चाहिए। आप सीधे अनाज भेज देंगे तो उनके खुद्दारी को ठेस पहुंचेगी... बात बिगड सकती है। बच्ची का ससुर कहां है ?
            वालीद- यहीं 20/25 किलोमीटर पर
          मै- ठिक है... अब समदी को फोन लगाकर बताओ इंशाअल्लाह कल मुलाक़ात होगी।आपके घर से आगे अगले गांव जा रहा हूँ, दोस्त की दुकान का उद्घाटन है। वापसी मे आपके दुकान आऊंगा।
            कल उनके पास जाते वक्त 50/75 किलो आपके घरमें जो चावल खाते है, वो और कुछ दुसरा सामान किसी भी दुकान से खरीद कर लेकर जाना और बोलना " दोस्त ने अनाज का दुकान खोला है, जो भी उद्घाटन के लिए आया सभी दोस्तों को तोहफ़े के तौर पर जबरजस्ती गले मे डाल दिया। हमारे लिए जितना लगता है, उतना रखकर बाकी इधर लाया"। और उधर ही रख देना। इंशाअल्लाह आपका काम हो जायेगा।
          बच्ची के वालीद कल मिले थे " भाई बहोत शुक्रिया इन तीन चार महीनों मे अब उन्हें भी वही चावल की आदत हो गई है, जो बच्ची खाती है, सब ठीक-ठाक चल रहा है।
    2] बच्ची- अंकल अब अलग परेशानी पेश आ रही है। ससुराल मे सब पतले सालन खाते है, मुझे सूख़ा पसंद है, तब आपने कहा था, अपने लिए अलग से बनाने की जरूरत नही, दस्तरखान से थोड़ासा सालन लेकर तवे पर डालकर अपने लिए सुख़ा बना लेना।
         मै- तो फिर क्या हुआ?
         बच्ची- अब सभी मेरे प्लेट से लेते है, सभी को मेरे जैसे ही चाहिए

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रिश्तेदारी मे रिश्ता करने से पहले

हाजरीन,
              अक्सर देखा गया है, रिश्तेदारी मे अपने बच्चों का रिश्ता करने के कुछ ही दिनों मे रिश्तों मे खटास आ जाती है, फिर रिश्ता तुटता है। इस की सबसे बड़ी वज़ह होती है, मजाज़ी  [ अवाजवी ] उम्मीद और अंधा भरोसा।
               रिश्ता होने से पहले की हमारी सोच यही होती है की, हमारे सामने बच्चे बड़े हुऐ है, आदत-अख़लाख जाने-पहचाने है। अंजान जगह रिश्ता करने से बेहतर है, रिश्तेदारी मे ही रिश्ता हो।
               कुदरत का निज़ाम ही कुछ ऐसा है की, हमे अपनो की बुरी ओर गंदी आदतें दिखाई देती ही नही।
               मराठी मे एक कहावत बहुत मशहूर है,'आपला तो बाब्या आणि दुसर्‍याचं ते कारटं' याने हमारा बच्चा कभी भी गलत कर ही नही सकता। गलत और नालायक तो सिर्फ दुसरों के बच्चे होते है। हम हमारे अपनों के बारेमे गलत सुनना भी पसंद ही नही करते। यही एक बड़ी वज़ह होती है, सही से तहकीकात ना करने की। जिस तरह से बाहर के रिश्ते के लिए हम पूछ-ताछ करते है, उस तरह क़तई तहकीकात नही करते
               हम गलत काम अपने बुज़ुर्गों के सामने नही करते इसमे बुजुर्गी कोई मायेने नही रखती। एक मिसाल हम सिगारेट खरीद लेते वक्त दुकानदार की उम्र नही देखते, उस दुकानदार से भी कम अपने बुजुर्ग को देखकर सिगारेट छिपा देते है।
              पिठ पीछे किए गये अच्छे और बुरे कामों के बारे मे मालूमात इकट्ठा करना हि तहकीकात कहलाती है।
               जब बच्चों के अख़लाक़ / कैरेक्टर को तौला जाता है, तराजू के उसी पार्डे में [ होने वाले समदी ] बहन,भाई या रिश्तेदारों की अच्छाईयों और वक्त-बेवक्त की हुई मदत भी डाली जाती है। हरदम हमारा खयाल रखने वाले, चाचा चाचा, मामु मामु, खाला खाला या अंकल अंकल करते आस पास मंडराने वाले, हमेंशा नमाज, रोजा, दीनी और समझदारी की बाते करने वाले बच्चे और हमारी हर हां मे हां कहने वाले उनके पेरेंट्स, क्या बात है! दुर से और रिश्ता ना होने तक ये बड़ा खुबसूरत और एकदम सही लगता है।
               फिर नया रिश्ता बनाने के बाद इतने गहरे ताल्लुक़ात, खुन के रिश्ते मे रंजिश कहां से आयी, सोंचने की बात है।
                हम एक बात अक्सर भूल जातें है की, हम जिस तरह दोस्तों का चुनाव कर सकते है, उस तरह रिश्तेदारों का चुनाव नही कर सकते। क़ुदरती रिश्तो के कुछ प्रोटोकॉल कुछ पाबंदियां कुछ छूट होती है। और एक खास बात, एक दुसरे को समझकर लेने का माद्या होता है। हर हाल मे साथ लेकर चलने का चलन आम बात होती है। वहां बहोत सी बातों को नजरअंदाज किया जाता है। मगर यही जब नये बंधन मे बंध जाने के बाद, एक रात मे इनके नाम और किरदार बदल जाता है। जैसे की, कल तक जिसे हम बेटा कहकर पुकारते वो बहु या दामाद बन जाता है। फुफु, मुमानी, खाला, चाची, बड़ेअम्मी, अंटी  सास बनकर पेश आती है। फुफा, मामु, खालु, चाचा, बड्डेअब्बा, अंकल ससुर बन जाते है।भाई, साढू, जिजा, साला, दोस्त समदी बन जाते है। बचपन की सहेली और साथ-साथ पढ़कर बड़े हुऐ दोस्त ननंद या देवर बन जाते है।
            और जब ये दोनो रिश्ते आपस मे टकराने लगते है, तब इंसानी फितरत आडे आ जाती है। वक्त की नज़ाकत को देखकर फायदे वाला रिश्ता आगे किया जाता है। कभी बेटा कभी दामाद, कभी बहु कभी बेटी, कभी भाई/दोस्त कभी समदी इस तरह कसरत चलती ही रहती है। और कसरत तो कसरत ही है, जाने-अनजाने मे पांव फिसल सकता है।
               रिश्तेदारी मे शादी करते वक्त कुछ बातों का खयाल रखेंगे तो इंशाअल्लाह हम जरूर कामयाब होगे।
             रिश्ता करने से पहले, दोंनो घरके जिम्मेदार, [ जिस मे लड़का लडकी जरूरी ] शामिल होकर, एक-दुसरे के ख्यालात, सोच और उम्मीदों को आमने सामने बैठ कर राय-मशवरा कर लेना बेहतर होता है। इस बैठक मे सब जिम्मेदार शुरुआत से लेकर आखिर तक मौजूद रहना है।   
               पुराने घाव, मानापमान, नासुर बने कुछ हादसों की खुलकर बात करने से दिलो-दिमाग मे का मैला साफ होता है। [ नये जोड़े के अपने अरमान अपने सुनहरे खाँब होते है। बच्चों के खुशहाल मुस्तक़बिल मे अपने माजी को मिलाकर दीन और दुनिया खराब ना करना ]
                जो भी तैय होता है, उसे कागज़ पर लिख ले। [ मुझपर भरोसा नही है क्या? इन बातों से परहेज करें ]
                 सभी हाज़ीरन को गवाह बनाकर दोंनो के पास एक एक कॅपी रखना है।  [  ये सब हम अल्लाह को राज़ी करने और बच्चों की ख़ुशी के लिए है। इस निय्यत से करेंगे तो इंशाअल्लाह रिश्ते मे प्यार, खुलूस, मज़बूती आयेंगी। ]       
              मुर्गी घर की हो या बाहर की कभी भी दाल बराबर समझने की भूल ना करना। 

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मेरा क्या कसूर .....!

                   आज पहिली बार ऑफिस मे कब्रिस्तान जैसा सन्नाटा छाया हुआ था। बच्ची के सवालात पर मां-बाप और मै एक-दूसरे को देखते रह गये।
                    गैर से शादी करने की जिद से बौखलाए वालिदैन बच्ची को लेकर जबरदस्ती ऑफिस लाए थे।
                 बच्ची- मुझे इस बात का एहसास है, बहोत जद्दोजहद से, रात-दिन एक करके, अपना पेट काटकर मुझे पढ़ाया-लिखाया। इस काबिल बनाया के मै खुद के फ़ैसले खुद करू, अबजब मैंने शादी का फ़ैसला ले लिया है तो कौन सी आफत आ गई।
                 मेरे छोटे कपडों से इनको अब शर्म और एतराज होने लगा है, जब के प्रायमरी से मुझे हाफ शर्ट और घुटनों के उपर वाला स्कर्ट पहनाकर यही तो भेजते थे.. तब तो बड़ा फक्र महसूस करते थे।
                   अब सर पर दुप्पटे की बात, मम्मी तो हमेशा नही लेती है, दुप्पटा सर पर। बचपन से देखती आयी हूँ, मम्मी सर पर दुप्पटा सिर्फ अजान के वक्त और अपने सगे जब घर आते है, तभी लेती है। [ धोबी, केबलवाला, दुधवाला जैसे तो पराए होते है, उनके सामने कैसा परदा ] इसी बात से दादी और मम्मी की हमेंशा खीटपीट होती थी, फिर आपने उनपर तरह तरह के इल्जाम लगाकर अब्बु को मजबूर कर दादी को चाचा के घर भेज दिया। आप दोंनो ने अपनी आझादी और मनमानी करने के लिए अपनी मां को दुर कर दिया। वही खीटपीट आज तुम मुझे से करती हो। आप दोंनो का रहन-सहन देख देख कर तो मै बड़ी हुई हूँ। आपने जो जो करते आये हैं वही सही समझकर वही मैंने सिखा है।
                     और हां आसपास और खानदान के जो रिश्ते जब घर तक चलकर आऐ, तो हिकारत से बराबरी के नही, कहकर आपने ठुकरा दिया, उन मे से दो-तीन को मैंने भी तो हां कहा था।
                    भाई के बारेमें ना कहे तो बेहतर होगा। उसे नोटों के आगे कुछ दिखाई ही नही देता। उसे शुरुआत से सब पता है, मेरे दोस्त, घुमना फिरना, मेरी देर रात की पार्टी उसे सब मंजूर है, बस थोडे पैसे दे दो।
                 मुझे तो कुछ गलत नज़र नही आ रहा है, ये जैसा चाह रहे थे, बिल्कुल वैसा ही है लड़का। मै उसी से शादी करूंगी। बच्ची की हर बात और दलिल के आगे सब हतबल और हताश नज़र आ रहे थे। बच्ची ने सिर्फ अपने मां-बाप को ही नही, आज के हर उस वालिदैन को एक मारा हुआ तमाचा है, जो अपने बच्चों के फ़ाज़िल और अंधे प्यार के शिकार है।
                      बच्चो को प्यार करना, उनकी फिक्र करना, उनके अच्छे मुस्तक़बिल का ख्याल रखना, हर मां-बाप का फर्ज होता है। ये हर जानदार के DNA मे शामिल होता है। दुनियावी तालिम बहोत ज़रूरी है, मगर उसके साथ साथ दीनी तालिम और माहोल देना भी तो ज़रूरी है। जो बच्चों की सही तरबिअत मे कारसाज़ होती है।  दीनी माहोल के बगैर बच्चों की तरबिअत करने का सीदा मतलब है, हम बच्चों को मुर्तद बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहें है। हमें कुदरत से सिखने की जरूरत है, जो बोया वही पायेगा।हर एक की हद तैय कियी हुई है। हद पार करने का खामियाजा भुगतना तो पढ़ेगा।
                  मै- ठिक है, मगर एक शर्त है। इस शादी के लिए इनके दिलो-दिमाग तयार नही है। इनको कुछ वक्त देना होगा चलेगा ? बच्ची मान गई और ऑफिस से निकल गई। मां-बाप और मै खुद भी हैरान-परेशान।
                     मै- जोर-जबरदस्ती नही चलेगी। हिकमत और सब्र से काम लेना होगा।शुक्र है, अल्लाह का, इसने आपको बता तो दिया, अक्सर बच्चे छुपेते-छुपाते करतें है। और मां-बाप को अपने किए पर पछताने के सिवा कुछ चारा नही रहता। जी हाँ, मां-बाप के किए गये गलतियों का ये नतीजा है। बच्चे तो कच्ची मिट्टी होते है, मां-बाप के रहन-सहन और सोच-समज के साचे मे खुद को ढाल कर शक्ल हासिल ले लेते है।
                 अल्लाह दिलों को फेरने वाला है। सब से पहले सच्चे दिल से तोबा कर अल्लाह से माफी मांग कर उसी से मदत मांगना है। अपने आमाल पर गौर व फिक्र कर, अपने आप को और घर के माहौल मे बदलाव लाना ज़रूरी है। बेशक दिलों को रोशन करने वाली जात वही है, पर हमारे दिल मे वो तडप होनी चाहिए।
                  कुछ हकीक़ी व्हिडीओ, आज के हालात पर रोशनी डालने वाले बयांन और दीन को ताजा और मजबूत करने वाली कुछ किताबें देकर, अल्लाह तआला से हमेंशा उम्मीदवार रहो.. कहक विदा कर दिया।
                 पूरी पोस्ट लिखते वक्त बचपन मे दादी से सुनी एक कहावत दिलो-दिमाग मे मंडरा रही है।
[जानकार/समझदार खाना पूरी करें]
    ज्यादा लाड-प्यार वाली लड़की...
    ज्यादा लाड-प्यार वाला लड़का..

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इनल्लहा मा साबिरीन

इनल्लहा मा साबिरीन
  हाजरीन ,
      कुछ दिन पहले लडक़ी और उसके मां अब्बु www.faiznikah.com के ऑफिस में आये ( जो हमारे ग्रुप के मेंबर नहीं है )
      उन्हें अपनी बेटी का जल्द से जल्द तलाक़ या खुला चाहिए था जो झटपट और आसान हो वो, कुछ भी करो मगर जल्दी करो
     बड़े गुस्से में थे वालीद, बातचीत के दौरान पता चला 5 साल पहले निकाह हुआ, सबकुछ ठीक चल रहा था। अचानक लड़के की नौकरी छूट गयी, पिछले 19 महीनों से लडक़ी मायके में है। लड़का कुछ कमाता नहीं। क्वालिफाइड होने के बावजूद दुसरी तरफ नौकरी नहीं मिल रही हैं।
      लडक़ी परेशान हो कर मायके चली आई।
     अब वालीद का कहना है-जब मैं ही संभाल रहा हूँ तो तो तलाक़ लेने में हर्ज क्या है?
       मै-हम तलाक़/ खुला देने का काम नहीं करते तुटते बिखरतें रिश्तों को जोड़ने का काम करते हैं।
      आज अगर बच्ची का तलाक़ हो भी जाए तो क्या उससे निकाह करने कोई तयार है ?
     बेशक अल्लाह ताला दिलों को फेरने वाला है।
        आपने अबतक संभाला इसके आगे तलाक़ हुआ समझकर और 1/2 साल संभालो। और अल्लाह ताला से दुआ मांगते रहो सब कुछ ठीक होगा।
     याद रहे ना उम्मीदी कुफ़्र है।
    तलाक़/खुला लेने से वापसी के दरवाज़े बंद हो जातें हैं।
   बड़ी मेहनत-मशक़्क़त के बाद, बात मानकर चले गये।
   कल उनका फोन आया और बार बार शुक्रिया कहने लगे।
      अच्छा हुआ आप की बात सुनी दस-बारा दिन पहले लडक़ी की सास आयी और समझा-बुझाकर लडक़ी को ससुराल ले गई और कल दोपहर दामाद और लडक़ी आये थे, दोनों बड़े खश नज़र आ रहे थे।
       शुक्र है अल्लाह ताला का सारी तारीफें अल्लाह के लिए हैं।
               इंतेखाब फराश
               मॅरेज काउंसलर

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हुकूमत


     दोस्तो,
     फ़ैज के एक सदस्य बड़े गमगीन अंदाज मे ऑफिस आये और कहने लगे, हमारे हिसाब से सब ठीक है, लड़का, उसका कारोबार, घर मगर घर मे सिर्फ मां का राज और हुकूमत चलती है।
    मैंने कहा माशाल्लाह, बहोत खूब याने आगे चलकर आपकी बेटी राज करेगी।
     सदस्य- मै समझा नही।
     मै- भाई उस घर मे लड़के की मां का राज, हुकूमत चलती है। यानी उस घर मे मर्दो को औरतों की बात सुनने और मानने की आदत है। उन मर्दो मे आपका दामाद भी शामिल है। कुछ सब्र से काम लो, थोड़े दिनों की बात है। आज नही तो कल मां को रिटायर्ड होना ही है। उसके बाद आपकी बेटी का राज शुरू होगा।
     कहावत तो सुनी ही होगी आज की बहु कल की सास।
     इस सच्चाई को कोई झुठला नही सकता के घर के अंदर औरतों की हुकूमत याने शांती और शांती ही से ही तो ख़ुशहाली आती है। घर-परिवार को कामयाब और एकजुट रखने मे मां का किरदार बड़ा और अहम होता है।
      दामाद और बहु के चुनाव के वक्त
     दामाद के अब्बा और बहु की मां की सीरत देखना पूरानी रवायत है।

 

...
देखना - दिखाना

दोस्तो, 

फोन पर बातचीत  फोटो और बायोडेटा समज ने के बाद, रुबरू होकर रिश्ता पक्का करने का स्टेप्स आता है।
लड़की - लड़का के साथ घर का माहौल, आदत - अख़लाक़, रहन - सहन और कि हुई मेहमान नवाज़ी भी देखी जाती है। और ये होना भी चाहिए। इस्लाम की भी यही मांग है।आगे के ख़ुशहाली के लिए बहोत ज़रूरी भी है।
             लड़का - लड़की के घर जाते वक्त और आये हुए महमानों का इस्तकबाल के लिए घर के सभी सदस्य हाज़ीर रहे तो बेहतर है।
उस वक्त खाने की कुछ गुंजाइश लिए रहे तो बड़ी अच्छा होगा। अपना परहेज को बड़ा इशु ना बनाना। बड़े प्यार और ख़ुलूस से देते है,थोड़ा सा लगेंगे तो कुछ ना बिगड़ेगा। 
     जिसके लिए इकट्ठा हुए उन्हे हायलाईट करना ज़रूरी है। 
 मग़रीब के वक्त जैसे दिया। 
        सबकुछ दिखाई देता है, कुछ दिए की रौशनी से और कुछ बाहर की रौशनी से।

आज सिर्फ और सिर्फ होने वाले दूल्हा - दुल्हन ही अव्वल, सबसे महत्वपूर्ण और काबिल है। बाकी सारे सेकेंडरी है।
अक्सर देखा गया है, मौजूद बहन, सहेली, भाई, दोस्त के साथ तुलना कर उन्हें  पसंद कर, जिसके लिए बात चल रही है उसे ठुकराया जाता है।
हम हमारी, रिश्तेदारों की और मुआशरे मे हमारी पोस्ट और काबिलियत पर बोलना जहाँ तक हो सके रोककर बच्चो के बारेमे बात कि तो ठीक आप की सारी मालूमात लेकर ही तो वो  पहुँचे है।
      सामने वालौ की अच्छाई देखना और उसकी तारीफ़ करना आज-कल जरा दुश्वार होता जा रहा है। मगर सामने वालेको अपना बनाना है तो ये मुश्किल काम आपको करना हि होगा।

...
लालच और खुदगर्ज़ी

तीन महीने पहले एक लडक़ी अपने रि श्तेदार *( रि श्तेका नाम लि खना मुनासि ब ना होगा और वैसे भी सारे
रि श्तेदार इंसान ही तो होते हैं )* के साथ अपना खुद का प्रोफाइल रजि स्ट्रेशन करवाने आयी थी।
माशाअल्लाह मल्टी नेशनल कंपनी में बड़ी अच्छी पोस्ट पर काम कर रही थी। पगार सवा लाख के करीब
था उम्र 35 साल। दि खने में ठीक ठाक।
*मां-बाप का 13 साल पहले एक्सि डेंट में इंतकाल हुआ था। शुक्र है अल्लाह सुभानु व ताला का पढ़ाई पूरी
होने को थी। घरमें छोटे भाई बहन, सबसे बड़ी यही थी, बड़ी बहन का फ़र्ज बखुबी नि भाया। अपना जाॅब के
बलबुते परा दोनों की पढ़ाई पूरी करवाकर अपने पैरों पर खड़ा कर उनकी शादी करवा दी।*
फ़ैज मॅरेज ब्यूरो के पहले बहुत सारे मॅरेज ब्यूरो में नाम दर्ज कराया था।
पांच दीन पहले लडक़ी ऑफि स आकर कहने लगी *रि श्ते तो बहोत आते हैं। फोन पर बातें सही सही होतीं भी
है। ऐसा लगता है, अब रि श्ता पक्का होगा अचानक उधर सेबि ना वज़ह इन्कार आता है।*
मैंने उनका प्रोफाइल देखा उसमें फोन करने के लि ए इन्होंने अपने रि श्तेदार का नंबर दि या था। मैंने वज़ह
पूछी तो बोलीं *मैं लडक़ी अपने ख़ुद के रि श्ते की बात कैसे करूं* बात सही थी।
मैंने दो दि न के बाद आने को कहा।
दुसरे दि न मैंने फ़ैज मॅरेज ब्यूरो के एक जि म्मेदार को सारी बातें सजाकर *उनके रि क्वायरमेंट के हि साब
से डमी रि श्ता* भि जवा कर, दि ये रि श्तेदार के फ़ोन पर बात करने के लि ए कहा। जैसे ही लडक़ी पसंद है और
हम नि काह करने के लि ए तयार हैं। कहा।
*अस्तकफि रउल्ला*
लालच और खुदगर्ज़ी का घि नोना रूप देखने मि ला। *मीठी मीठी बातें करने वाला रि श्तेदार उसका नाम ना
बताने की शर्त के साथ अचानक उस लड़की के बारे में गंदी गंदी बातें बताने लगा और बहुत सारे इलज़ाम लगा
कर कहने लगा आप भले इंसान है इस लि ए बता रहा हूं, आपको यक़ीन ना होतो मै लडक़ी के आशिकों को भी
मि ला सकता हूँ। वगैरा वगैरा। बार-बार अल्लाह, रसूल का वास्ता दे रहा था।*

फोन की रि कार्डिं ग सुनकर लडक़ी के आंखो से आँसुबहनें लगे। *मैंने इनके हर मुसीबत और ख़ुशी के मौके
पर पानी की तरह पैसा बहा दि या है। अपना परि वार समाजा। मेरे मां बाप होते तो ये सब ना होता, अब मेरा
क्या होगा ?*
मै - कोई ताजुब की बात नहीं। उनके लालच और डर ने आपका नि काह रोक रखा है *और ये तो रि श्तेदार
है हमने सगे मां बाप भाई बहनों को एसी हरकतें करते देखा है।*
अंडा देने वाली मुर्गी कौन हलाल करता है ? *आप तो सोने का अंडा देते आ रहें हो।*
इनको अल्लाह और आख़रत का कोई खौफ नहीं। बस अपनी पड़ी है। *नि काह के साथ साथ प्रॉपर्टी , बैंक
बैलेंस और मोटी पगार में हि स्सेदार ये नहीं चाहतें।* इन्हें माफ़ कर दो, *एक सबक समझकर और आगे की
जि ंदगी के बारेमें सोचो। अल्लाह की जात से कभी मायूस ना होना। इंशा अल्लाह फ़ैज मॅरेज ब्यूरो के
जि म्मेदार आपके रि श्ते के लि ए पूरी तरह से कोशि श करेंगें। अल्लाह हमारी कोशि शों को जरूर कबूल करेंगे।*

...
...इब्रत.... हिकमत

दोस्तों,
दो दि नों से एक व्हि डीओ वायरल हो रहा है *एक भि खारी अपनी ति न पहि यों वाली गाड़ी पर बैठ कर पैसे/
नोट गीन कर सीधे लगा रहा है। जो हमारे उम्मीद से कई गुणा ज्यादा है। इससे अंदाज़ा लग रहा है कि भि खारी
बड़ा मालदार है।*
इस व्हि डीओ में एक बहुत बड़ी बात अल्लाह ताला बताना चाहतें हैं। क्या आपने इस बात पर गौर कि या ?
*एक आम आदमी जो रि क्शावाला, वाचमन, फ्रुट, सब्जी या कोई और हलाल की कमाई करने वाला बड़ी
मुश्कि ल से महीने भर में 12000 से 15000 हजार कमा कर अपना परि वार चलता है। चाहे जीस तरह की भी
मुश्कि लें, मुसीबत आये कि सी दोस्त या रि श्तेदारों सेउधर /कर्ज लेगा मगर कभी भि ख मांगने की बात ख़ाब में
भी नहीं सोचेगा।*
अब आप कहेंगे इसमें *अल्लाह की हि कमत, इब्रत की बात कहॉ ंसे आयी।*
ज़रा हम इसका दूसरा/ सही पहलू पर गौर करेंतो एक बात साफ़ साफ़ नज़र आयेगी *भि कारी करोड़पति
होते हुए भी अल्लाह ताला उससे भि ख ही मंगवा रहें हैं। जि ल्लत की जि ंदगी जीने पर मजबूर कर रहे हैं।*
*और जो मेहनत मजदूरी करके हलाल की रोज़ी रोटी से अपनी जि ंदगी गुजार रहा है उसे इज्ज़त की
जि ंदगी दे रहें है।*
बेशक तु *अल मुइज़ ( इज्ज़त देने वाला ), अल मुज़ि ल ( ज़लील करने वाला) है।*

...
गलति यों का एहसास

जैसे आमाल वैसे फ़ैसले ये अल्लाह के फरमान को हमने भुला दि या था।
*मगर आज हमें हमारी गलति यों का एहसास हो गय है।*
*मेरे होनहार, पढे-लि खे, खुबसूरत बच्चों के लि ए रि श्ते तो बहोत आये, मगर बेहतर और बेहतर और बेहतर
के चक्कर में हमने बड़ी नादानी/ गुरूर वज़ह से छोटी छोटी बातों को लेकर रि श्ते ठुकराते चले गए।*
*या अल अफूव ( गलति यों को दरगुज़र करने वाला ) हमें हमारी गलति यों को सुधारने एक मौका हमें दे ।*
*हमारी अपनी ख़ुद की शादी के वक्त हमारे पास क्या था ? हम कि स हालातों से गुज़रे ? कौन कौन सी
मुसीबतों का सामना कि या ? इसका जि क्र भी हमें याद न रहा।*
*हम दोनों मि याँ-बीबी के आपसी प्यार-मोहब्बत, रि श्ते नि भाने के लि ए की क़ुर्बा नी, घर-संसार चलानेके
लि ए की जद्दोजहद, मेहनत, लगन से ख़ुश होकर तुने हमेंहक़ीर से साहि बे हैसीयत बनाया।*
कि सी और को क्या दोष दें। *हमारे ख़ुद के ऑखों पर पड़े घमंड के परदे न जाने कि तने अच्छे रि श्तों को
हि क़ारत कि नज़रो से ठुकरा दि या था।*
*हम हमेशा इब्लीस की बातों में आ जाते हैं कि ज़माना बदल रहा है। हमें ज़माने के हि साब से चलना
होगा, आजकल के बच्चे कहाँ सुनते हैं, हमें हमारे बच्चों को खुद के पैरों पर खड़ा करना है।*
इसी चक्कर में बच्चों की उम्र कब नि कल गईं समझ ही नहीं आया।
हमने हमारी जि म्मेदारी /सच्चाई / हकीक़त से महंु मोड़ रखा था।
*लेकि न एक हकीक़त हमें याद रखना जरूरी था के पि छले 1400 सालों में कुछ भी नहीं बदला है। हर दौर
में हर हाल में हर मुश्कि ल, परेशानी में इस्लाम की रौशनी ने हमें सही रास्ता दि खाया है।*
इस्लामि क ही नहीं आज का मॉर्डन साइंस भी शादी की सही उम्र *18 से 27 हि बताता है।*
लड़का हो या लड़की मां-बाप *अपने खून पसीनेकी कमाई से बच्चों की परवरि श करतें हैं।*
हमने भी अपने बच्चों की भलाई के लि ए उन्हेंअच्छा माहौल, अच्छी तालीम दि लवाई। ये हमारे फ़र्ज भी
था।लेकि न *मेरे परवरदि गार हमें उन्हें सि र्फ दुनि यांवी तालीम दी दीनी तालीम और तरबि अत से दुर रक्खा,
उसकी जरूरत, एहमि यत ना समझी इसी का नतीजा है कि हमारी बच्चे ग़ैरों से शादी करना फ़ख्र महसूस कर
रहे हैं।*
*अल ख़ाफ़ि ज़* ( गि राने वाला ) इतना भी ना गि रा के हमारा वजूद हि खत्म हो जाएं ।
हम को हमारी गलति यों का एहसास हो गय है। तुरहीम है,करीम है हमें माफ़ कर दे।
*तु गैब्बोद्दीन है। हमें पुरा यक़ीन है, तु हमारी मदद जरूर करेंगा। अबतक हुईं गलति यों को सुधारने एक
मौका हमें दे दे।

...
फैसला मुकद्दर का

हाजरीन,
कल ऑफि स में एक नौजवान और उसकी मां अपने बच्चों का रजि स्ट्रेशन करवाने आये थे।
बातचीत से पता चला दो लड़कीयां है, उम्र 25 और 27 की लेकि न उन्हें सि र्फ बड़ी बेटी का रजि स्ट्रेशन
करना था।
मैंने सबब पूछा तो बोले *छोटी के लि ए रि श्ते आ रहे हैं। मगर बड़ी को छोड़ कर छोटी की शादी कैसे करें,
लोग क्या कहेंगे।*
बात तो उनकीं सोलाआने सच ही थी। हमारे आसपास हमें ये मंज़र देखने मि लता है।
मैंने उन्हें 2 साल पहले हुये फ़ैज मॅरेज ब्यूरो के मेंबर का कि स्सा सुनाया।
*दो-ढाई साल पहले एक रि टायर पोस्टमन ने अपनी ति न लकड़ि यों का रजि स्ट्रेशन कर दि या था। उम्र
24/26/29 एसी थी।*
रजि स्ट्रेशन के दो हफ़्ते बाद बड़े मि यां बड़ेअफ़सोस के साथ कहने लगे रि श्ते तो बहुत आ रहें हैं, मगर
छोटी बेटी के लि ए। बड़े दोनों को हर जगह से इनकार ही आ रहा है। क्या करूँ समझ नहीं आ रहा है।
*मैने कहा ना उम्मीदी कुफ़्र है। वो अल मतीन ( ज़बरदस्त क़ुव्वत वाला ) है। उसी पर छोड़ दो हमेंसि र्फ़
कोशि श करना है। करने वाली जात अल्लाह की है।*
*आप बेधड़क छोटी बच्ची का रि श्ता पक्का करें। लोग, रि श्तेदार की परवाह न करें। अल्लाह बड़ा बुजुर्गी
वाला और हि कमत वाला है।*
बड़े मि यां को बात समझ में आयी। उन्होंने उसी महीने छोटी की मंगनी पक्की कर दि ।
*रि श्ते दो लोगों के बीच नही दो खानदानों के बि च होता है। सामने वाला खानदान काफ़ी बड़ा था। मेहमान
की तादाद हजारों में थी।*
दोनों खानदानों को मि लाकर जानपहचान का दायरा बहुत बड़ा हुआ। आपसी मेलजोल से एक दुसरे को
जानने के मौके मि ले।
*शुक्र है अल्लाह सुभानु व ताला का मंगनी के चौथेदि न ही बड़ी बेटी का रि श्ता तैय हुआ, और फि र ति न
महीने में मजली का।*
बड़े मि यां जो के 7/8 सालों से परेशान थे। एक झटके में टेंशन से फ्री हो गये।
*अल्लाह का एक नाम अल अली भी है, याने बहुत बुलन्दी वाला । सचमुच सारी तारीफें अल्लाह के लि ए
हैं।*
आपके खानदान में, आस-पड़ोस या दोस्तों मे येमसला है तो ये फ़ैज मॅरेज ब्यूरो की हकीक़त बताएं।
*याद रहे हम Information Technology* के दौर से गुजर रहे हैं। इसका सीधा मतलब *मालूमात और
हि कमत*

...
फैसला मुकद्दर का


          हाजरीन,
 कल ऑफिस में एक नौजवान और उसकी मां अपने बच्चों का रजिस्ट्रेशन करवाने आये  थे। 
     बातचीत से पता चला दो लड़कीयां है, उम्र  25 और 27 की लेकिन उन्हें सिर्फ बड़ी बेटी का रजिस्ट्रेशन करना था। 
      मैंने सबब पूछा तो बोले छोटी के लिए रिश्ते आ रहे हैं। मगर बड़ी को छोड़ कर छोटी की शादी कैसे करें, लोग क्या कहेंगे।
        बात तो उनकीं सोलाआने सच ही थी। हमारे आसपास हमें ये मंज़र देखने मिलता है। 
        मैंने उन्हें 2 साल पहले हुये फ़ैज मॅरेज ब्यूरो के मेंबर का किस्सा सुनाया। 
      दो-ढाई साल पहले एक रिटायर पोस्टमन ने अपनी तिन लकड़ियों का रजिस्ट्रेशन कर दिया था। उम्र 24/26/29 एसी थी।
        रजिस्ट्रेशन के दो हफ़्ते बाद बड़े मियां बड़े अफ़सोस के साथ कहने लगे रिश्ते तो बहुत आ रहें हैं, मगर छोटी बेटी के लिए। बड़े दोनों को हर जगह से इनकार ही आ रहा है। क्या करूँ समझ नहीं आ रहा है। 
       मैने कहा ना उम्मीदी कुफ़्र है। वो अल मतीन ( ज़बरदस्त क़ुव्वत  वाला ) है। उसी पर छोड़ दो हमें सिर्फ़ कोशिश करना है। करने वाली जात अल्लाह की है।
        आप बेधड़क छोटी बच्ची का रिश्ता पक्का करें। लोग, रिश्तेदार की परवाह न करें। अल्लाह बड़ा बुजुर्गी वाला और हिकमत वाला है।
         बड़े मियां को बात समझ में आयी। उन्होंने उसी महीने छोटी की मंगनी पक्की कर दि। 
        रिश्ते दो लोगों के बीच नही दो खानदानों के बिच होता है। सामने वाला खानदान काफ़ी बड़ा था। मेहमान की तादाद हजारों में थी।
        दोनों खानदानों को मिलाकर जानपहचान का दायरा बहुत बड़ा हुआ। आपसी मेलजोल से एक दुसरे को जानने के मौके मिले। 
     शुक्र है अल्लाह सुभानु व ताला का मंगनी के चौथे दिन ही बड़ी बेटी का रिश्ता तैय हुआ, और फिर तिन महीने में मजली का।
         बड़े मियां जो के 7/8 सालों से परेशान थे। एक झटके में टेंशन से फ्री हो गये। 
         अल्लाह का एक नाम अल अली भी है, याने बहुत बुलन्दी वाला । सचमुच सारी तारीफें अल्लाह के लिए हैं।
        आपके खानदान में, आस-पड़ोस या दोस्तों मे ये मसला है तो ये फ़ैज मॅरेज ब्यूरो की हकीक़त बताएं।      
याद रहे हम Information Technology के  दौर से गुजर रहे हैं। इसका सीधा मतलब  मालूमात और हिकमत 
       अल्लाह ताला ने हर जानदार को जोड़े में बनाया है। बस हमें मालूम करना है कि कहाँ हमारा हमसफ़र है।

...
🎯  फिरका और बिरादरी  🎯

दोस्तो, 
     बच्चों के निकाह सही वक्त न होने की एक और बड़ी वज़ह फिरकापरस्त और बिरादरी है। 
     ये हकीकत है फिरकापरस्ती को झुटलाया नहीं जा सकता। हुजूर सल्लाहु अलैही व सल्लम का क़ौल है।
      मगर भारत के मुसलमानोंने एक अलग ही तमाशा लगा रक्खा है, बिरादरी का। तांबोळी, अत्तार, बागवान, शेख़,सय्यद, मनिआर, क़ाज़ी, ख़ान, पठान और न जाने क्या-क्या। ये तो बात नहीं कही थी हमारे प्यारे नबी सल्लाहु अलैही व सल्लम ने। 
      पोस्ट लिखने से पहले रोटी-बेटी, शादी-ब्याह के ताल्लुक से सौदी, कुवैत, इंडोनेशिया और ईरान का हाल जाना,उधर कुछ हद तक फिरकापरस्त ताकतों का असर तो है, मगर भारत जैसे बिरादरी की ग़लत, बेतुकी कोई बात नज़र नहीं आयीं। 
       एक फ़िरका होने के बावजूद कारोबार से मिले नाम से हम अलग-अलग कैसे हो जाते हैं, ये बात मेरी समझ से परे है।
           ⭕एक हकीक़त ⭕
      पहले बिरादरी पे अडे रहकर मुनासिब रिश्ते ठुकराने वाले बढ़ती उम्र, तलाक़, कुला होने पर बिरादरी से बाहर रिश्तों से परहेज़ नहीं करते।

इंतेखाब फ़ैजुनीसा म.इसहाक फराश
            मॅरेज काउंसलर 
            फ़ैज मॅरेज ब्यूरो
            9503801999 
      ( संडे ऑफिस खुला रहेगा )

...
इज़हार ए हैसियत


      हमारा सब कुछ तो बच्चों के लिए हि तो है, किस के लिए कमाया है? अब अरमान नही पूरे करेंगे तो कब? एक ही औलाद है और ना जाने क्या क्या... ऐसी बहोत सी बातें आपने सुनी-कही होंगी। बच्चोंके शादी-ब्याह के मौक़े पर। 
       और इसमे हमे कुछ गलत नज़र नही आता, भारतीय समाज व्यवस्था की गहरी छाप जो हमपर पड़ी जो है।  
    शुक्र है अल्लाह सुभान व ताला का जिसने हमे साहेब ए हैसियत बनाया। ये भी सही है की, हमारे हैसियत के हिसाब से हमारा रहन-सहन हो।

       मगर क्या हमे हमारी " इज़हार ए हैसियत " दिखाने के लिए एक ही शैय बची है " शादियां " ? 
     हमने हमारे घर मे देखा होगा, छोटे हमारी कैसे नकल करतें है। वैसेही मुआशरे, समाज मे आप बड़े है। जाहीर है आपकी नकल तो होगी ही।
        भाईओ अल्लाह ने आपको खास, रुतबेदार और दौलतमंद बनाया है, आप अपने अरमान पूरे करने के चक्कर मे आम आदमी फस कर यही सही है, समझकर आपकी नकल कर रहा है या मजबूर किया जा रहा है।
      ये रीति-रिवाज आसमान से नही आये है। ये आप हम जैसों की एजाद है। आसमान से तो सादगी आयी।
       मुझे यकीन है, बड़ों ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए एक मिसाल पेश की तो छोटों को राहत भरी एक गाईड लाईन मिलेगी।
         इंतेखाब फराश 
         मॅरेज काउंसलर
         फ़ैज मॅरेज ब्यूरो 
        9503801999

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फोटो और बायोडाटा

किसी भी मॅरेज ब्यूरो या पर्सनल तौर पर जब हम अपना या अपनों का फोटो - बायोडाटा देते है तो, यही मकसद होता है की मुनासिब रिश्ता मिले और जल्द से जल्द निकाह हो। 
          🙈 फोटो🙈
       कुछ फोटो बड़े ही बेतुके होते है। लगता है, किस फॅशन शो के लिए खिंचवाई है। 
       इन बेतुके फोटो की वजह पूछने पर जवाब भी बेतुका मिलता है, सामने वालौ को लगेगा हम बहोत आधुनिक है, पिछड़ेपन से दूर है, हम बहोत मॉर्डन है। ( मार्डन की परिभाषा क्या है, इन्ही से पूछ लेना बेहतर होगा )
          📄 बायोडाटा 📄
      कोई-कोई बायोडाटा देखकर ऐसा लगता है रिश्ते के लिए नही डराने के लिए भेजा है। सारे खानदान वालो के नाम जिसमे चीचा, ताया, मामु जो कभी जज़, वकील, इन्स्पेक्टर, पोलीस, राजनीतिक लिडर थे, इनके नाम, डीग्री और अहोदा डालकर क्या साबित करना चाहतें है अल्लाह ही बेहतर जाने। 
        दामाद कमानेवाला और समजदार हो और बहु नेक, दिनदार, शौहर के साथ साथ घरवालों को लेकर चलने वाली हो। ऐसी रिश्तों मांग की तादाद अब भी 70% के उपर है।
      हमे हमेशा याद रखना चाहिए की आज भी दामाद / बहु उनके मां-बाप ही तैय करतें है, जो 45 साल से उपर होते है। उनके समजमे आया वहीं रिश्ता तैय होगा।
      ये हकीक़त है, सादगी और साफ-सुथरे फोटो - बायोडाटा वालोंके रिश्ते जल्दी तैय होते है।
      ये बहोत अहम है के हम ख़ुद को कैसे पेश कर रहें है। 
       याद रहे फस्ट इम्प्रेशन का असर लंबे समयतक रहता है।

इंतेखाब फ़ैजुनिसा म.इसहाक फराश 
           मॅरेज काउंसलर 
           फ़ैज मॅरेज ब्यूरो
          9503801999

 

...
सब्र नही देरी

 दोस्तो,
     ये कहावत प्रचलित है की सब्र का फल मीठा होता है, मगर एक हकीक़त है के देरी का फल सड़ता है। खराब होता है। किसी कामका नही रहता और बदबूदार बन जाता है।
     पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कौल है, हर बीमारी का इलाज है बुढापे सिवा। ( सुनन अबू दाऊद हदीस नं. 3855 )
       क़ुदरत ने हर एक की सीमा तय की है। हम रोज़ अपने आपको या अपने बच्चों को देखतें है तो हमे फर्क नज़र नही आता या हम देखकर अंजान बनते है।
       मगर वक्त बड़ा ताकतवर होता है। किसी ने क्या खूब कहा है। वक़्त की हर शै गुलाम,वक़्त का हर शै पे राज। दुनिया का कोई मेकप, फेशियल और दौलत जवानी की ओरीजिनल खूबसूरती लौटा नही सकती। वर्ना माधुरी आज भी स्टार होती।
       घर बैठे रिश्ते आने की तादाद आहिस्ते आहिस्ते कम होने की वजह बढ़ती उम्र ही होती है।
 
         इंतेखाब फराश 
         मॅरेज काउंसलर 
         फ़ैज मॅरेज ब्यूरो 
         9503801999

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कुछ तो लोग कहेंगे

दोस्तो, 
     आपने अबतक सैकड़ो बार दोस्त, रिश्तेदार या आसपड़ोस के बच्चों के शादी-ब्याह में गए होंगे। हाल मे दाखिल होने के बाद जर्नल जो बातें होती है, उसपर गौर ए फिक्र कहेंगे तो बेवजह रुके रिश्ते बन सकते है।
मेहमान- मुबारक हो।
मेजबान- शुक्रिया
मेहनत- क्या करता है दामाद / बहु ?
मेजबान- इंजीनियरिंग है।
मेहमान- माशाल्लाह बहुत खूब।

( गौर करें मेहमान ये भी नही पूछता कौन से साईट का याने - मेकॅनिकल, सिविल, इलेक्ट्रॉनिक) बस मुबारक देकर  दस्तरखान की ओर चला जाता है।
      मैंने या मुझसे आजतक किसीने ये नही पूछा की लड़का-लड़की तलाक़शुदा है क्या ?
    ना कभी एजुकेशन की सर्टिफिकेट मांगी ना उम्र जांच-पड़ताल के लिए आधार कार्ड मांगा।
    ना कभी घर खुदका है या किराए का है पुछा।
       ये सारे सवाल तो अपने खैरखाँ के भेस मे आये आस्तीन के सांप होते हैं। वही पूछते है। और हम इनकी बातों से डर कर बच्चों के निकाह मे देरी कर देते है।
     इसमे कोई शक नही के मां-बाप ही बच्चों के सही खैरखाँ होते है। और उनकी ज़िम्मेदारी बनती है वो अपने बच्चों के लिए बेहतर से बेहतर रिश्ता तलाश कर बच्चों की जिंदगी आसान और खुशहाल बनाए।
      मै हमेशा कहते आया हूं के दो-चार नालायक, नासमझ, विघ्नसंतोषी रिश्तेदार और दोस्तों के बातो मे आकर, बच्चों के रिश्ते ना टाले।
     ......कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना।
        हमे तो रोजेहश्र मे अल्लाह सुभानु व ताला क्या कहेंगे इसकी फिक्र करने की जरूरत है।
इंतेखाब फ़ैजुनिसा म.इसहाक फराश
          मॅरेज काउंसलर 
          फ़ैज मॅरेज ब्यूरो 
          9503801999

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जबरदस्ती नहीं

  हाजरीन, 
     आजकल शादी के  हफ़्ते दो हफ़्ते में तलाक़ / खुला हो रहें हैं। तहकीकात से एक बड़ी वज़ह पता चली हमसफ़र पसंद नहीं है। 
    शादी एक दो दिनों तैय नहीं होती। इसका बड़ा प्रोसीजर होता है। लडक़ी/लड़का देखने से लेकर निकाह के दिन तक 3/4 महीने निकल जाते ही हैं। 
            इसी दौरान हमारी माँ-बाप, भाई -बहन, करीब रिश्तेदार या दोस्तों की जिम्मेदारी बनती है कि हम लड़का/ लडक़ी की को सीधा पूछें कि आपको ये रिश्ता मंज़ूर है या नहीं।
          बच्चे इंकार करें तो अपने इज्ज़त का इशू ना बनाकर जबरदस्ती ना करें,  इंकार की वज़ह की तफ़तीश करें, और बच्चों को कॉन्फिडेंस में लेकर सही फैसला लिया जाना चाहिए।
          बच्चों, याद रहे अपने मां-बाप ही हमारे सच्चे खैरखाँ है। उनका ये फैसला सिर्फ और सिर्फ हमारी खुशी और खैरीअत के लिए हैं। और हम मां-बाप का भी फ़र्ज बनता है कि अपनी औलाद बात को संजीदगी के साथ सुनें।
     कुछ फिजूल की बातें  से परहेज करें। 
         मेरी बहन-भाई, दोस्त का रिश्ता है। मैंने जुबांन दी है। इनकार से मेरी नाक कट जायेगी। कहीं मुँह दिखाने के लायक नहीं रहेगा।
         ऐसे इमोशनल बातों से बच्चे वक्ती तैर पर मान भी जायेंगे, पर जब मौका मिलते ही गज़ब खड़ा कर देते हैं। ज़ोर जबरदस्ती से रिश्ता हो भी जाए तो टिकने की उम्मीद ना के बराबर होती है।
       ये तमाशा चार लोगों और चार दिवारों के बिच होना बेहतर है या शादी के बाद सरे-आम ये तैय हमें  करना है।   बच्चे ख़ुशी ख़ुशी अपनी जिंदगी गुजारे यही हमारी मनशा है तो अपने आंखो पर लगी ईगो की पट्टी हटाकर उनकी पसंद ना पसंद देखने की जरूरत है।
         सबसे अहम बात इस्लाम में कहीं पर भी शादी के लिए मां बाप की पसंद ना पसंद का कोई जिक्र नहीं आया है। बस मियाँ-बीबी राज़ी हो यही शर्त रखी है।