आओ सच्चे दोस्त का फर्ज अदा करें।


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आओ सच्चे दोस्त का फर्ज अदा करें।
हक़ की बात बोल, बिनधास्त बोल
        रमीज़ - अब्बा और मां आप दोंनो से एक बात कहनी है।
       अब्बा- बोलो
       रमीज़- मुझे शादी सादगीसे, सुन्नत तरीक़े पर करनी है।
        अब्बा- ये क्या तमाशा लगा रख्खा है, अब सब बातचीत हो गई है। उन्होंने हाॅल, केटरिंग और बाकी की बुकिंग कि है। परसो संडे तेरा साला भी आने वाला है, तेरे शादी का जोड़ा दिलाने।
      रमीज़- हां अब्बा इसी शादी के जोड़े ने तो मेरी आँखे खोल दी है।
      अब्बा- क्यूँ क्या हुआ ?
      रमीज़- जब मैने मेरे दोस्तों से शादी के जोड़े की खरेदी का कहा, तब सब खुशी खुशी साथ आने तय्यार हो गये। मगर जब उन दोस्तों को पता चला के, जोड़ा दिलाने मेरा होनेवाला साला आ रहा है, याने मै लड़की वालों से पैसे ऐंठ रहा हूँ तो सबके सब दोस्तो ने साथ आने से साफ इन्कार कर दिया। और उन्होेंने ये भी कहा है की, वो मेरे निकाह मे नही आयेंगे।
            आब आप ही बताओ, मै क्या करू? बिना दोस्तो के निकाह मे रौनक कहां से आएगी।
      अब्बा- कहाँ है तुम्हारे दोस्त ? बुला लाओ बात करतें है।
      अब्बा दोस्तों [ मंझुर, अल्ताफ, बशीर, अय्याज ] से- अरे भाई हमने उनसे कोई डिमांड नही की है, वो तो लड़की वालों के अरमान है। होनेवाले समदी-समदन ने साफ तौर पर कहा है की, इतना सब बच्चों के लिए तो कमाया है। अब खर्च नही करेंगे तो ये पैसा किस काम का ? अब आप ही बताइए, हम क्या करे ? हमने कोई जोर-जबरदस्ती नही की, ये सब उनके मर्जी से हो रहा है।
        मंझुर- ज़िन्दगी भर आपने अपने बलबूते पर और अपनी कमाई से रमीज़ को पढ़ाया-लिखाया, अपनी हैसियत के बढ़ाकर हर ख़्वाहिश पुरी की, पाल-पोस कर काबिल बनाया, अब वो काबिल बन गया है तो वो अब आपके लिए, अपने घर के लिए कर रहा है। अब उसके ज़िन्दगी मे ये सब से बड़े ख़ुशी के मौक़े पर दुसरों के कपड़े पहना रहे हो! ये कहाँ तक मुनासिब है।
        अल्ताफ- ये शरीअत के खिलाफ है। आप जैसे साहिब-ए-हैसिय्यत का देख देखकर गरीब लोग कर्जा ले लेकर आपको फालो करने के चक्कर मे कर्जदार बन बैठे है। इन फुजूल और बेबुनियादी रितीरिवाज के सबब कितने ही लड़कियों के शादी उम्र कबकी निकल चुकी है।
         बशीर- हमने देखा है जाहिरी तौर पर साहिब-ए-हैसिय्यत दिखने वाले कितने ही मा-बाप अपनी लड़की की शादी के वक्त हाथ पसारे दरदर मदत मांगने मजबूर हो जाते है, वो भी आप जैसे लोंगो की वजह से। सिर्फ 30% लड़कीओं के निकाह मा-बाप अपने बलबूते करते है। बाकी 70% निकाह ऐसे ही दुसरों की मदद से होते है।
        अय्याज- चाचा ये जहालत है।अभी भी वक्त नही गया। अभी इसी वक्त दिल से 'अस्‍तगफिरूल्‍लाह' पडलो, और अपनी गलती सुधार लो। अल्लाह ने मुसलमानों व तमाम लोगों से यह वादा किया है कि जब हम अपनी की गई गलतियों की माफ़ी मागेंगे तो अल्लाह हमें ज़रूर माफ करेंगे। चाहे हमारे गुनाह (पाप) पहाड़ जितने बराबर ही क्यों न हो।
          रमीज़ के अब्बा को बात समजमे आयी। उसी वक्त उन्होंने होनेवाले समदी को फोन करके निकाह सादगी और सुन्नत पर करने की बात कही। फोन पर कह रहे थे, नही जी...संडे बच्चे को ना भेजना.... रमीज़ तो आज ही अपने दोस्तो के साथ शादी का जोड़ा लेने जा रहा है।
         रमीज़ अपने दोस्तो के साथ खुशी खुशी घर से निकल गया। उसके अब्बा बहोत देर तक समदी से बाते करते रहे। इन बातो से घर का माहौल अचानक ख़ुशगवार हो गया। बेशक गुनाह से बचकर सुन्नत पर अमल करना तो सौ शहीदो के उतना सबाब है। सबाब की बरकत और रौनक यूं भी घर को ख़ुशहाल और ख़ुशगवार बनाती ही है।