अव्वल वक्त का सही वक्त।


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अव्वल वक्त का सही वक्त।
         पिछले दिनो एक मय्यत मे शामिल हुआ। रूह कब्ज लगभग दोपहर 3 बजे के आसपास हुई थी। जैसे ही रिश्तेदारों को मालूम हुआ सब मय्यत मे शामिल होने के लिए निकल पड़े। सबसे दुर के रिश्तेदार याने मय्यत की सगी बेटी 350- किलो मिटर पर से अपनी मां की मय्यत के लिए तुरंत निकल पड़ी। पहुँचने का सटीक वक्त मालूम होने के बावज़ूद एक हदीस के हवाले से, चंद मिनीटो पहले मय्यत को दफ़नाया गया।
            जहां तक ​​दफ़न में देरी का सवाल है, सुन्नत के मुताबिक़ मय्यत को दफ़नाने में जल्दी करनी चाहिए जैसा कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (अल्लाह तआला उसके जिक्र को बुलंद करे) कहा है: ''मृत को दफ़नाने में जल्दी करो।''  [अल-बुखारी और मुस्लिम] मय्यत को दफ़नाने का यही सिद्धांत है, कि उसे दफ़नाने में जल्दी करनी चाहिए और पहल करनी चाहिए जब तक कि दफ़न में देरी करने का कोई ठोस कारण न हो।
            मय्यत को दफ़नाने में देरी करने के कई ठोस कारणों में से एक मय्यत के रिश्तेदारों के आने का इंतज़ार करना है, बशर्ते कि यह लंबे समय तक न हो।
              कुछ फ़हक़ीहों ने कहा है कि मय्यत के रिश्तेदारों, उसके दोस्तों और दूसरे लोगों के आने तक इंतज़ार करना जायज़ है। कुछ इस्लामिक स्कॉलर के फ़तवे अनुसार ऐसा करना जायज़ है। बशर्ते कि इससे उन्हें कोई परेशानी न हो और यह डर न हो कि मय्यत सड़ जाएगी। [ मय्यत सड़ने कि प्रक्रिया 24 घंटे बाद शुरू होती है ] मगर इधर ऐसा मसला बिलकुल ना था।
           रहा देर रात को दफ़नाने का मसला- जहाँ तक जनाज़ा की नमाज़ पढ़ने और दफ़नाने के लिए कोई मुस्तहब वक्त तैय नही है। जनाज़ा की नमाज़ और दफ़न कोई भी वक्त जायज़ है। सिर्फ ये तीन समय पर मना किया गया है 1] जब सूरज उगता है,जबतक की वो पूरी तरह से निकल ना आए। 2] दोपहर के वक्त जब सुरज सिर के ऊपर होता है, जबतक कि सुरज थोड़ा ढल न जाए। 3] जब सुरज ढलने वाला होता है, जबतक कि सुरज पुरी तरह डूब न जाए। [ मुस्लिम ]
        मा आयशा- रज़ियल्लाहु अन्हा- की हदीस है "हमने पैगंबर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दफ़न के दौरान रात के आखिरी हिस्से में कुदालों की आवाज़ सुनी"। इसका सिदा मतलब रात के कोई भी वक्त दफ़न किया जा सकता है।
              मां-बाप की मौत बहुत बड़ा सदमा होता है। मानो सारी दुनियाँ ही उजड़ गई हो। अपनो की मौत का दर्द बेहद दर्दनाक और गमगीन करने वाला होता है। ये हमारे दिलो-दिमाग को झंझोड़कर रख देता है। जबतक हम मय्यत का मरा मुह ना देख ले तबतक हमे यकीन ही नही होता की हमारी ज़िन्दगी का एक अविभाज्य शख्स अब हमेंशा के लिए पोशीदा invisible हो गया है।